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________________ ३६ : सरस्वती-वरदपुत्र पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ इस जनश्रुतिमें पाणाशाहको गोलापरब बताया गया है। पर थूबोन रिपोर्ट में इसे अग्रवाल कहा है ।“ दूसरे, यदि यह गोलापूर्व और सर्वप्रतापी था, तो इसके प्रतिष्ठित मंदिर और मूर्तियाँ अवश्य उपलब्ध होते । अतः प्रमाणोंके अभावमें उक्त जनश्रुति भी कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं करती। प्रेमीजीके बताये सूरतके महुआ और रानीताल भी साक्ष्योंके अभावमें 'गोला', नहीं है। अतः वे इस अन्वयके उद्भव-स्थल सिद्ध नहीं होते । ___पं० मोहनलाल शास्त्रीने टीकमगढ़ जिलेके अहार और पपौरा तथा छतरपुर जिलेके छतरपुर और महोबासे प्राप्त अभिलेखोंके आधारपर इन स्थानोंको 'गोला' मानकर उनमेंसे किसी एक स्थानको इस अन्वयका उद्भव-स्थल बताया है। पर वह संदेहास्पद है। यद्यपि टीकमगढ़ जिलेमें स्थित अहारक्षेत्रके पास मौजूद 'गोलपुर' ग्रामको ‘गोला' से समोकृत किया जा सकता है और गोलपुरके निकट स्थित अहार और पपौरा ऐसे स्थल हैं, जहाँ गोलापून्वियके प्रचुर प्रतिमा-लेख उपलब्ध हैं । परन्तु गोलपुरमें वैश्योंकी बहुलता नहीं रही, जो इस समाजको जन्म देते । डॉ० कोठियाका भी सम्भावित यह गोलपुर इस अन्वयका इसी कारण उद्भव-स्थल संभव नहीं है । गोलागढ़को 'गोला' स्थान माननेके संदर्भ में पं० परमानन्दजी शास्त्रीका कथन तर्कसंगत प्रतीत होता है। इसके निम्न हेतु हैं-- (१) गोल्लागढ़को वर्तमानमें गोलाकोट कहते हैं। यह मध्यप्रदेशके शिवपुरी जिले में खनियाधानासे छह किलोमीटर दूर है। यहाँ एक गोल पहाड़ीपर गोल कोट बना हुआ है । इस कोटके भीतर ११९ मूर्तियाँ हैं, जिनकी आसनोंपर वि० सं० १००० से १२०० (ई० ९४३ से ११४३) तकके अभिलेख अंकित हैं । एक विशाल जैन मन्दिर भी बना हुआ है ।२९ अतः यह स्थान (गोल्लागढ़) 'गोला' कहा जा सकता है । (२) चन्द्रगिरि (श्रवणवेलगोल) में उल्लिखित ई० ११६३ के एक लेखमें गोल्लदेश और वहाँके राजाके किसी कारणवश (संसारभयसे) विरक्त होकर मुनि होने तथा उनके प्रसिद्ध आचार्य 'गोल्लाचार्य' नामका उल्लेख किया गया है, जो इस सन्दर्भमें ध्यातव्य है। (३) उक्त चन्द्रगिरिसे ही प्राप्त एक अन्य लेखमें भी उक्त प्रकारसे उल्लेख किया गया है। विशेष यह कि उपर्युक्त राजाको गोल्लदेशका प्रसिद्ध भूपाल तथा अभिनव चन्देलवंशनरेन्द्रचूड़ामणि कहा गया है । इसके साथ ही उन्हें वीरनन्दि विबुधेन्द्रकी परम्परामें होनेवाला प्रसिद्ध आचार्य गोल्लाचार्य बतलाया गया है।३० इन दो शिलालेखोंसे प्रकट होता है कि गोल्लदेश चन्देलवंशी राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र था और सम्भवतः इसीको ‘गोला' या 'गोल्ला' कहा जाता था। अब देखना है कि यह गोल्ला या गोला (गोल्ल) देश कहाँ है, जिस पर चन्देले राजाओंका शासन रहा है। इतिहासकार डॉ. ज्योतिप्रसाद जैनने लिखा है कि ई०८३१ में नन्नुक चन्देलने इस वंशकी स्थापना की थी और उसने खजुराहोंको अपनी राजधानी बनाया था । धंग इस वंशका बड़ा महत्त्वाकांक्षी राजा था । खजुराहोका पाश्वनाथ मंदिर इस शासकके प्रथम शासनवर्ष ई० ९५४ में बना था । यह मुनि वासवचन्द्रका आदर करता था ।३२ इसके पौत्र विद्याधरदेवके द्वारा ई० १०२८ में खजुराहोके शांतिनाथ मंदिरमें आदिनाथकी विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठापित कराई गई थी। कीर्तिवर्मन् चन्देलके मंत्रो वत्सराजने देवगढ़में दुर्ग बनवाकर उसका 'कीर्तिगिरि' नाम रखा था ।३३ मदनवर्मदेव इस वंशका धार्मिक निर्माण-कार्योंमें अधिक रूचि लेनेवाला प्रसिद्ध शासक रहा है। जगत्सागर (छतरपुर) और पपौरा (टीकमगढ़) से ई० ११४५ के, मऊ (छतरपुर) से ई० ११४६ के, खजु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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