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________________ २२ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशोषर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ मकानकी ओर संकेत करते हुये कहा कि पण्डितजोको इसो मकानमें शादी हुई थी । उस समय मेरी आयु १४ वर्षकी थी। उनका विवाह बहुत ही सादे ढंगसे हुआ था । प्रश्न-पण्डितजीका यहाँ आना कैसा रहा ? उत्तर--पण्डितजीके यहाँ आनेसे समाज में बड़ो चेतना जागी। उन्होंने पूरे दिगम्बर जैन समाजको संभाला तथा संस्थाओंके संचालनमें योग दिया तथा समाजको एक सूत्रमें रखा तथा जहाँ तक हो सकता था समाजको सुधारकी दिशामें मोड़ने में सफल रहे। प्रश्न--क्या आप पण्डितजीके विचारोंसे सहमत रहे है ? उत्तर-पण्डितजीका तो सेवाभावी जीवन रहा है। उन्होंने वेतनके नामसे समाजसे अथवा किसी संस्थासे एक पैसा भी नहीं लिया। यही नहीं, कभी मानपत्र भी स्वीकार नहीं किया। उनका जीवन पूर्ण निस्पही जीवन रहा है। उन्होंने सदैव समाजको एवं युवकोंको अच्छे मार्गपर लगाया। मैं जब म्यूनिसिफल चैयरमैन था, तो पण्डितजीको चुनावमें खड़ा होनेके लिये बहुत कहा गया, लेकिन उन्होंने उसे कभी स्वीकार नहीं किया। वे कहने लगे कि बीनामें जब कभी मुनियोंका विहार होता है, पण्डितजी मुनिसंघकी बहुत सेवा करते है, उनको स्वाध्याय कराते हैं । अभी मुनि श्री सुधासागरजी महाराज आये थे, तो पंडितजीने एक महीने तक समयसारकी वाचना की । निश्चय-व्यवहार, उपादान-निमित्त आदिके झगड़ोंमें बीना समाजने सदैव पंडितजीका साथ दिया है। अभी समयसारको वाचनामें कितने ही विद्वानोंको भी आमंत्रित किया गया था। पण्डितजीने उनकी सुन्दर व्यवस्था करके बीना निवासियोंका हदय जीत लिया। प्रश्न-पंडितजीकी और क्या विशेषता है, एक-दो गिनाइये ? उत्तर-हमारे सागर-मंडलके सभी राज्याधिकारी पंडितजीकी ईमानदारी, निस्वार्थ सेवा एवं सच्चाईसे प्रभावित हैं । कचहरीमें पंडितजीने जो कुछ कह दिया उसीको सही माना जाता है । यह, क्या पंडितजीकी कम विशेषता है ? इतना कहकर वे चप हो गये और हमने भो हाथ जोड़कर उनसे विदा मांग ली। पंडित भैयालालजी शास्त्री इसके पश्चात् मुझे ५० भैयालालजी शास्त्री बीना निवासीसे भेंट करनेका अवसर मिला । पं० भैयालालजी शास्त्री पं० बंशीधरजीके घरपर ही आ गये थे । आप दोनों एक ही उम्रके हैं। बहुत सक्रिय हैं। मैं जब बीना गया तो वहाँ समाजके चुनावोंकी चर्चा थी। पं भैयालालजी शास्त्री चुनावमें तो जीत गये, लेकिन उनकी पार्टी बहुमतमें नहीं आ सकी । जब मुझे बताया गया कि ये पं० फूलचन्द्रजीके छोटे भाई हैं तो मुझे उनसे मिलनेमें और भी प्रसन्नता हुई । लेकिन विचारोंमें दोनों भाई अलग-अलग है । एक व्यवहारका पूर्ण समर्थन करते हैं तो दूसरे पं० फूलचन्द्रजी निश्चयका पक्ष करते हैं । जब मैंने पं० भैयालालजी शास्त्रोसे पं बंशीधरजीके बारेमें कुछ विचार प्रकट करनेके लिये कहा तो वे कहने लगे कि हम तो ६२ वर्षसे पंजीके सम्पर्क में हैं। हमारा तो उनको पूर्ण सहयोग रहता है। हम दोनोंमें सोनगढ़को लेकर खूब चर्चायें होती रहती हैं । बड़ा आनन्द आता है चर्चा करने में । पंडितजीका बहुत ऊँचा ज्ञान है, इसलिये वे प्रत्येक बातको स्पष्ट रखते हैं। प्रश्न--पंडितजी वस्त्रव्यवसायी कैसे बन गये? उत्तर--पंडितजीका प्रारम्भसे व्यापारकी ओर ध्यान रहा । उन्होंने अपने श्वसुरसे लोन लेकर वस्त्रव्यवसाय करना प्रारम्भ किया। और उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त की। उनकी सच्चाई एवं ग्रापकोंके साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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