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________________ २/व्यक्तित्व तथा कृतित्व : २१ श्री नन्हेलाल बुखारिया इसके पश्चात हमलोग श्री नन्हेलालजी बुखारियाके पास पहुँचे । बुखारियाजी पंडितजीसे आयुमें बड़े है। उनकी आय ८७ वर्षकी है। अभी भी शरीरमें कडकपन है। लेकिन ज्यादातर वे घरमें ही रहते हैं। बुखारियाजी वर्षों तक समाज के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी पत्नी श्रीमती रतनीबाई ८४ वर्षकी होंगी। जब मैंने अपने आनेका कारण बताया तो कहने लगे पण्डित बंशीधरजीके बारेमें क्या कहना है ? उनका स्वभाव तो बड़ा मधुर है। सबसे मिलते-जुलते रहते हैं। विद्वान है। पर कभी-कभी वे अपनी बातपर अड़ जाते हैं और फिर अपनी ही बातको रखने का प्रयास करते हैं । प्रश्न-क्या आप बता सकेंगे कि उनके प्रति समाजमें कैसी धारणा है ? उत्तर-पण्डितजी २१ वर्षों तक बीना-समाजमें सब कार्यों में आगे रहे । वे अच्छे राजनीतिज्ञ भी रहे हैं, स्वतन्त्रता सेनानी हैं । इसलिये उनके बारे में मैं क्या कह सकता हूँ? प्रश्न-मैंने बातको आगे बढ़ाते हुये जानना चाहा कि उनके जमानेमें संस्थायें कैसी चलती थीं और आजकल कैसे चलती हैं? क्या इनमें आपको कुछ उतार-चढ़ाव दिखाई देता है ? उत्तर--वे अपने पलंगपर ही लेटे हुये कहने लगे कि विद्यालय तीन आधारपर चलते हैं--संचालक अध्यापक एवं विद्यार्थी । संस्थायें तो पण्डितजीके पूर्व भी चलती थीं। लेकिन पण्डितजी द्वारा संभालनेके पश्चात् सभीने आशातीत उन्नति की है। और जब उन्होंने उन्हें छोड़ दिया तो उनमें फिरसे शिथिलता आ गई। इसोसे आप उनके व्यक्तित्वको पहिचान सकते हैं। पण्डितजीका बीना समाजमें कोई विरोधी नहीं है, क्योंकि वे सबको साथ लेकर चलते हैं। प्रश्न--मैंने सुना है कि आप भी स्वतन्त्रता सेनानी रहे थे ? उत्तर--इस प्रश्नपर वे मुस्कराने लगे। वे कहने लगे कि मैं और पण्डितजी दोनों ही जेल गये थे । सागर जेलमें हमदोनों साथ रहे । सागरसे उन्हें दूसरी जेल में भेज दिया गया और मुझे सागर ही रखा गया । मैं सी क्लास में था और पण्डितजी बी क्लासमें थे। वे आगे कहने लगे कि आजकल समाजका वातावरण बहुत खराब है। यहाँको संस्थाओंको एक-डेढ़ लाखकी इनकम है लेकिन झगड़ेकी जड़ भी वही है। इतनी इनकममें तो बहुत अच्छा विद्यालय चल सकता है । लेकिन उधर कोई ध्यान नहीं देता। उन्होंने अपनी बातको जारी रखते हुये कहा कि वर्तमानमें निश्चय और व्यवहारका झगड़ा चल रहा है । पण्डितजी व्यवहारके पोषक हैं तथा उसका वे पूरा समर्थन करते हैं। हम पण्डित फूलचन्द्रजीकी पुस्तक "जैन तत्त्वमीमांसा" पढ़ते रहते हैं, लेकिन दोनों ही एकांगो लिखते हैं । पण्डितजी तो बहुत बड़े विद्वान हैं लेकिन हम तो बहुत कम पढ़े लिखे हैं । इसलिये इस सम्बन्ध में कह भी क्या सकते हैं। इतना कहने के पश्चात् वे चुप हो गये और हम उनसे क्षमा याचना करते हुये उठकर चले आये । सिंघई आनन्दकुमारजी इसके पश्चात् श्री सिंघई आनन्दकुमारजी जैनसे घरपर जाकर भेंट की । सिंघईजी बीना निवासी हैं। व्यापारी हैं तथा ७६ वर्ष पार कर चुके हैं। सर्वप्रथम डॉ० कोठियाजीने मेरा एवं डॉ० भागेन्दुजीका परिचय कराया। मैंने सर्वप्रथम अपने आनेका कारण बतलाया तथा पण्डितजीके अभिनन्दन-ग्रंथकी चर्चा की तो वे स्वतः ही कहने लगे कि पण्डितजीसे मेरा सन १९२८से परिचय है। उनकी यहीं शादी हई थो। पासके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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