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________________ से समझ लेंगे। नवकार में प्रवेश करना है, तो नवकार का शुद्धोच्चार नमना चाहिये। जो नम नहीं सका, उसने 'नमो' सीखा ही नहीं। 'नमो' करें। शब्द हमें विनम्र बनने का संदेश देता है, विनम्र बनने की प्रक्रिया 'नमो अरिहंताणं' में 'नमो' प्रारंभ में है और 'अरिहंताणं' अन्त समझाता हैं। यदि अरिहन्त को पाना है, प्रकाश को पाना है, सत्य में है। पहले 'नमो' है। ऐसा क्यों है? कारण अरिहंत तक पहुँचने को और अमरत्व को पाना है; तो विनीत बनना होगा। विनम्रता से के लिए 'नमो' आवश्यक है। बिना 'नमे' अरिहन्त प्राप्त नहीं होंगे। ही अरिहन्त परमात्मा का सामीप्य प्राप्त होगा। किसी भी चीज को पाने के लिए झुकना पड़ेगा। जमीन पर यदि कुछ न' अर्थात् नहीं और 'मो' अर्थात् मोह। जिसमें मोह-ममत्व गिर गया है, तो उसे लेने के लिए झुकना पड़ता है; फिर अरिहन्त मान नहीं है वही नम सकता है, झुक सकता हैं। उसी के जीवन में परमात्मा जैसे परम इष्ट झुके बिना कैसे प्राप्त होगे? कभी प्राप्त नहीं परमेष्ठी आलम्बन बन जाते है। यदि ममता-भाव नहीं हटा, राग-भाव होंगे। 'नमो अरिहंताणं' इसीलिए कहा गया है। नहीं हटा तो चाहे जितना 'नमो, नमो' रटते जाओ, वह कोरा शब्दोच्चार अरिहंत : सर्वबन्धन-मुक्त होगा। 'नमो' बोलते हैं, तब तक 'अरिहंताणं' नहीं; पर 'नमो' के बाद केवल पर्ची नहीं 'अरिहंताणं' बोलिये। ऐसी आदत डालिये, फिर आपको स्थान मिल र मान लीजिये, आप बीमार हो गये और डॉक्टर के पास गये। जाएगा। यदि 'नमो' को छोड़ दिया और केवल 'अरिहंताणं' रटते डॉक्टर ने आपकी जाँच की और नुस्खा दे दिया। आप घर आये रहे तो काम नहीं चलेगा। 'अरिहंताणं' के पहले 'नमो' चाहिये ही। और रोज उसे पढ़ते रहे। आप बहुत प्रसन्न हो रहे हैं, नुस्खे को पढ़ अरिहन्त भगवान् जो हैं, वे समस्त बन्धनों से मुक्त हो चुके कर। आपने नुस्खे को सम्हाल कर तिजोरी में रख दिया है। क्या हैं। उन्होंने चारों घाती कर्मों का क्षय कर लिया है। आत्मा के मूल उस नुस्खे को केवल पढ़ कर आपका रोग दूर हो जाएगा? नहीं, गुणों -अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य और अनन्त सुख ऐसा कभी नहीं होगा। रोग दूर करने के लिए नुस्खे में लिखी दवाई का जो घात करे, वह घाती कर्म है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, आपको लेनी ही पड़ेगी और पथ्य-पालन करना पड़ेगा. तब कहीं मोहनीय, और अन्तराय ये चारों आत्मा के मूल गुणों का घात करते आपका रोग दूर होगा। परचा पढ़ने मात्र से बीमारी थोड़े ही दूर हो हैं इसलिए इन्हें घाती कर्म कहते हैं। अरिहन्त परमात्मा ने इन चारों जाती है। डॉक्टर कितना भी अच्छा क्यों न हो, नुस्खा कितना भी घाती कर्मों का नाश कर दिया है। इसलिए वे अनन्त चतुष्टय से युक्त रामबाण क्यों न हो, पर जब तक दवाई का सेवन नहीं किया जाएगा, रोग दूर नहीं होगा। इन घाती कर्मों का नाश उन्होंने कैसे किया? तीर्थंकर पद प्राप्त आप कहते हैं हमें भी 'नमो अरिहंताणं' बोलते-बोलते बहुत करने के पहले विगत जन्म में उन्होंने दर्शन-विशुद्धि, विनय-संपन्नता समय हो गया। आप मानते हैं कि हममें नवकार मन्त्र के प्रति श्रद्धा आदि सोलह कारणों की साधना की थी। उन्होंने स्वयं अपने जीवन है, आस्था है। पर भाई! तुम्हारा यह विश्वास तभी सही माना जाएगा, में 'नमो' पद की साधना की थी। भगवान् भी जब गृहस्थ धर्म को जब 'नमो' को सीख लेंगे और जीवन में उतार लेंगे। हमें अहंकार त्याग कर साधु धर्म को स्वीकार करते हैं और महाव्रत ग्रहण करते के शिखर से नीचे उतरना है। परमेष्ठी भगवन्त हम से महान् हैं। उन हैं, तब नमो सिद्धाणं बोलते हैं। यह 'नमो' शब्द बड़ा जानदार है। परमेष्ठियों के आगे हम अहंकार के पहाड़ पर बैठ कर अपनी ऊँचाई 'नमो' के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता। 'नमो' का भाव जब तक कम नहीं कर सकते। उनके चरणों में शरणागति पाने के बाद ही जीवन में नहीं आता; तब तक संसार का चक्कर अटल है। ऊँचाई कम होगी, जीवन धन्य होगा। 'नमो' : जीवन की नींव 'नमो बदले 'ममोसीया _ जीवन में यदि नमन का भाव नहीं आया, तो जीवन निरर्थक मोह घटेगा तो 'नमो' अवश्य ही जीवन में सार्थक हो जाएगा। हो जाएगा। 'नमो' तो हमें जीवन में हर जगह 'नमना' सिखाता है। यदि ऐसा नहीं हुआ और 'नमो' का विस्मरण हो गया तो नमो तो 'महाबल देखा जरा सीस के झुकाने में। यह सच है, जिसने सिर छूट जाएगा और 'ममो' जीवन में आ जाएगा। यह ममो क्या है? झुका लिया, उसने सब कुछ जीत लिया। झुकने वाला बच गया और 'म' यानी ममता और 'मो' याने मोह; अर्थात मेरी ममता और मेरा अकडने वाला टट गया। आपको मालम होगा. जब आँधी आती है. मोह। बस ममता और मोह ही शेष रह जाएगा। और तब आत्म-स्वभाव तब बड़े-बड़े पेड़ चरमरा कर टूट जाते हैं, पर घास के तिनके बच तिरोहित हो जाएगा। ऐसा न हो, इसलिए 'नमो' सिखाया गया है। जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? इसलिए कि पेड़ अकड़े रहते हैं, टूट । बस, आप नमो को अपने जीवन में उतार लो, झुकते जाओ, नमते जाते हैं; तिनके झुक जाते हैं, बच जाते हैं। झुकने से रक्षा हो सकती जाओ; आप अपने-आप अरिहन्त की शरण में स्थान पा जाओगे। है; इसलिए 'नमो' व्यवहार में भी जीवन का आधार है। यदि नमे नहीं, अकड़े ही रहे, तो फिर ऊँचे उठने का प्रसंग नहीं नमो = नम्र बनो आयेगा। हम रोज 'नमो' 'नमो' रटते हैं, पर जब नमने का मौका आता छोटे बनो, बड़े झकेंगे है. तब अकड़ जाते हैं। जीवन में हम नमते नहीं हैं। यथावसर अवश्य आपको मालूम है, कई बार जब, मकान का द्वार छोटा होता श्रीमद् जयंतसेनसूरिस अभिनंदन ग्रंथावाचना कपट मित्रता संग में, रहे नहीं संसार । जयन्तसेन कपट रहित, सन्मति सार्थक सार । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012046
Book TitleJayantsensuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Lodha
PublisherJayantsensuri Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages344
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size88 MB
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