SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 874
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि कान्तिसागर : अजमेर-समीपवर्ती-क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार : ८३६ Wwwwwwww मौलिक और एक संग्रहात्मक-धमार संग्रह' इन पंक्तियों के लेखक के संग्रह में सुरक्षित है. रचनाओं में कवि ने अपनी छाप नगधर' या 'नगधरदास' रखी है.' कविवर जवानसिंहजी का अध्ययन अत्यन्त विशाल और तलस्पर्शी था. जयलाल या जयकवि इनके मित्र और साहित्यिक सहयोगी थे. यह स्वाभाविक ही है जब दो सहृदय कवि एकत्र होकर सारस्वतोपासना करने लगें तो उत्तम फल प्राप्त होते ही हैं. सचमुच उन दिनों किशनगढ़ का साहित्यिक वातावरण कितना परिष्कृत और प्रेरणादायक रहा होगा? रसतरंग-जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस में कृष्णभक्तिमूलक रस की आध्यात्मिक तरंगों का बाहुल्य है. कवि हृदय की मार्मिक अनुभूतियों का सुंदर और सहज परिपाक सूचित रचना में हुआ है. कवि ने आत्म निवेदन में जिन भावों की सफल सृष्टि की है, वह अनुपम आनन्द का अनुभव कराती है, ऐसा प्रतीत होता है मानो अनन्त मानवों का स्वर एक कण्ठ से ध्वनित हो रहा हो. शान्त, भक्ति और वात्सल्य रसों की धारा पूरे वेग से प्रवाहित हो रही है. भक्तिरस है या नहीं ? इसकी विवेचना यहां अप्रस्तुत है, पर इतना कहना पड़ेगा कि कृष्णभक्ति के मधुरोपासक कवियों ने इसे रस के रूप में प्रतिष्ठित अवश्य किया है. कोई भी भाव-चाहे स्थायी हो या व्यभिचारी-प्ररूढ़ अथवा प्रवृद्ध होने पर रस की कोटि में आ जाता है. भगवान् के गुणों का सततचिन्तन, श्रवण एवम् मनन करते रहने से आत्मा स्वाभाविक रूप से अन्तर्मुखी आनन्द का अनुभव करता है और इसका चारित्र के साथ संबंध प्रवृद्ध होने पर तो तदाकार भी हो जाता है. आलोच्य कृतिकार चाहे संत या भक्त कोटि में न आते हों, पर उनकी अभिव्यक्ति भक्त की पूर्वपीठिका के सर्वथा अनुकूल है. प्रेमभक्ति का प्रवाह रसतरंग की अपनी निजी विशेषता है. ग्रंथ के अंतःपरीक्षण से विदित होता है कि कवि ने केवल अपने सहज स्फुरित भावों को ही लिपिबद्ध नहीं किया, अपितु एतद्विषयक आवश्यक अध्ययन के अनन्तर शास्त्रीय परम्परा को ध्यान में रखते हुए भावभूमि का सृजन किया है. तभी तो वह इष्टदेव के प्रति पूर्ण समर्पण कर सका है. प्रस्तुत रसतरंग को अध्ययन की सुविधा के लिये तीन भागों में विभाजित करना होगा. प्रथम भाग में बधाइयां. जिनका संबंध कृष्णचरित से है, द्वितीय भाग में वे बधाइयां आती हैं जो वल्लभाचार्य और उनके वंशजों से सम्बद्ध है. इसमें वल्लभाचार्य स्वयं, विठ्ठलनाथजी, (कोटावाले) गोपीनाथजी दीक्षित, तीसरे गिरधरलालजी आदि आचार्यों का समावेश होता है. तीसरे भाग में कवि ने दीपावली, चीरहरण, होली आदि प्रसंगों को लेकर भगवान् कृष्ण की जीवन १. इस की स्पष्टता कवि ने अन्यत्र कई स्थानों पर को ही है, पर इनकी रचना 'जल्वये शहनशाह इश्क' को टीका में वृन्द के वंशज कविवर जयलाल ने भी इस पर इस प्रकार प्रकाश डाला है कवि मनभाव वर्णन नगधर लखि चित अटकि कै परयो गिर यो मधि फन्द । ज्यों बालक लड बाबरो चहत खिलौना चन्द ||३६|| टीका नगधर इति-यामें कवि मन भाव वर्नन हैं, 'नग' जो गिरराज जिनके धारण करनेवाले जो प्रभू जिनको लखि देखिकै मैं बोच फंदा के पड़ गयौ, अर्थात् मेरो चित्त हैं सो पभून मैं आसक्त हुयो सो प्रभू जगदीश अचिन्त्यानंद ब्रह्मा शिवादिक कौं ध्यानागम्य ऐसे प्रभू कहां, तहां पर रष्टांत जेसे जो बालक चंद्रमा को खिलौना करके मागें, यह कह जू यह खिलौनां माकी लाय दो, वह खिलौनां कैसे आवे, कहां तो बालक अरू कहां वह चन्द्रमा ऐसे जांनी अरु यहां 'नगधर' पद हैं सो कवि को काव्य रचना को नाम भी है. दृष्टांत अलंकार है. भाषा भूषन जहां विव प्रतिबिंव सौं दुहूवाबय दृष्टान्त । इति, यहां उपमेय वात्रय कवि मन फर में पडनी प्रतिक्वि अरु उपमा वाक्य बालक को चन्द्रमा खिलौनां मांगनी बिंव है ।।३६।। जल्वये शहनशाह इश्क को टीका की निज संग्रहस्थ प्रति से उद्धृत, पत्र १२६-४, MEE निवाNINNINNINNER सानाNINANINANINNINteyorg
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy