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________________ ८४० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय घटनाओं पर प्रकाश डाला है. षट् ऋतुओं के साथ भगवान् की तुलना करके कविने जो प्राकृतिक शोभा का वर्णन प्रस्तुत किया है वह तो कवि हृदय की चरम परिणति है. कवि विचारों में उदार प्रतीत होता है, वह परम कृष्णोपासक होते हुए भी उसने बड़ी ही श्रद्धा से मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भी एक बधाई लिखी है. कहीं-कहीं स्वमतपोषणार्थ महाराजा नागरीदास, स्वामी हरिदास आदि संत प्रवरों के पद उद्धृत किये हैं. भाषाभूषण और किशनगढ़ प्रवासी कवि हरिचरणदास कृत सभाप्रकाश का उपयोग किया है. पूरा ग्रंथ राग-रागनियों में ही नहीं है, कवित्त, सवैया, दोहा आदि भी प्रयुक्त हुए हैं. इन रचनाओं में जहां कहीं काठिन्य है उन स्थानों की कवि ने टीका भी साथ ही साथ समाविष्ट कर कृति का गौरव द्विगुणित कर दिया है. जैसा कि ऊपर सूचित किया जा चुका है कि जवानसिंह-नगधर का अध्ययन बहुमुखी था, विषय प्रतिपादन में वह दक्ष हैं तो अनेकार्थ साहित्य के प्रति भी उदासीन नहीं. एक उदाहरण दिया जाना उपयुक्त जान पड़ता है.--- हरित कदंब भूमि हरियारी हरी' अमावस हरयो समाज । हरी सवारी साज चल्यो है हरी' गाज सवहि न मन राज ।। हरि तनया प्रफुलित हरि गुंजत हरि सोभा सुख धाम । हरित लतनि में हरित हिंडौरा हरि संग भूलत हरिमुख° वाम ।। हरि" कुंज गहर१२ हरियारी हरि सोभा बरनी नहीं जात । हरे रतन तन वसन हरे रंग हरीय पहुपमाला५ सरसात ।। हरी१६ हरी पर सोभित अद्भुत, हरि वरसत हरि लायो । हरी'६ राग गावत मुरली में मधुरं मन२० हरि२१ भायौ ।। हरिवरनी २२ हरिगमिनी२३ री तूं हरिलोचनि२४ मदमाती । हरिकटि२५ लचकत संग झूलन में हरिबैनी२६ उछराती ।। हरखि-हरखि२७ गावत मधुरै सुर भई हरी रंग राती ॥ 'नगधर'२८ हरि हरख ६ हरियारै हरी हरी३° सवहिन मन भाती ।। कवि ने रसतरंग में जहां एक ओर ब्रज भाषा का उपयोग किया है वहीं दूसरी ओर अपनी मातृभाषा ढुंढाडी को विस्मृत नहीं किया है. रचनाकाल कवि ने नहीं दिया है, पर प्रतिलिपि काल और कवि की अन्य कृतियों से सिद्ध है कि सं० १९४५ के लगभग रसतरंग रचा गया है. जल्वये शहनशाहे इश्क-३६ पद्यात्मक यह लघुतम रचना साहित्यिक सौंदर्य का भव्य प्रतीक है. कवि ने इसमें आत्मस्थ सौंदर्य को साकार कर अपनी काव्यकला का उल्लेखनीय परिचय दिया है. सम्पूर्ण रचना प्रतीकात्मक है. भगवान् कृष्ण को शहनशाह मानकर उसकी सृष्टि का एक राज्य के रूप में वर्णन किया है. शहनशाह, रानी, मंत्री, नगर, दुर्ग, सिंहासन, न्यायालय और उसके अध्यक्ष, जल्लाद, छत्र, चंवर, धनुष-बाण, ध्वजा नौबत, मुसद्दी, कोतवाल, सेना, विषयक उपकरण, शस्त्रास्त्र कोश, खेमा, नौबत आदि का विशद् परिचय देते हुए भाट का स्थान नागरीदास के यहां जो टिप्पण दिये गये हैं वे सब कवि के ही हैं १. हरियारी अमावस, २. प्रसन्न सषी गनादिक, ३. काम की सवारी, ४. इन्द्र को गाज. ५. जमुनाजी, ६. प्रफुल्ल, ७. गुज हे भ्रमर, ८. हरिवल्लरी, ६. श्रीकृष्ण, १०. चंद्रवदनी, ११. सवज कुज हैं, १२. गहवर हैं, १३. वन, १४. पन्ना, १५. कमल पुष्प की माला, १६. इंद्र धनुष, १७. आकाश पर, १८. जल वरसे है, १६. पवन चल्यो हैं, २०. मन को २१. हरिक, २२. कनकवरनी, २३. गजगमनी, २४. मृगनैनी, २५. सिंहसी, कटि, २६. सर्पसो बैनी, २७. प्रसन्न भई, २८. राजा, नगर कवि कौ नान, हरी राजा, २६. हरि की प्रीत, ३०. हरी-हरी यह पूर्वोक्त जमक शब्द की उक्ति सर्व के मन भावती हुई है। VAL Jain Education Intemat S .ainelibrap.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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