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________________ स्वामीजी की आचार्यपरंपरा भारतीय संस्कृति के जीवनाधार सन्त : सन्त भारतीय संस्कृति के जीवनाधार हैं. भारत के सन्तों ने अध्यात्मविद्या प्रदान कर संसार के भवारण्य में भूले-बिसरों को जीवन का चरम लक्ष्य बताया है. आज अध्यात्मविद्या विदेशों में भी पल्लवित हो रही है. इसका उद्गमस्थल भारत है. यह अतिशयोक्ति नहीं कि भारत के सन्त अनुस्रोतगामी न बनकर प्रतिस्रोतवाहक बने और उन्होंने भोगाकुल भयग्रस्त संसार को, दुनिया से स्वयं दूर रह कर, ध्यान, धारणा, समाधि और लयावस्था की अनुभूति का अमृत बांट कर संसार में महनीय उपकार किया है. सन्त, विचार में आचार और आचार में विचारों का पवित्र पावन संगम है. सन्त का जीवन विचार, आचार, विवेकक्रिया, साधना, संयम और तप आदि का बहुरंगी चित्र है. भारतीय जन-जीवन, सन्त का समादर करता है, उसकी पूजा करता है. क्योंकि सन्तों के तपःपूत जीवन से उसे प्रेरणा मिलती है. जीवन की सम्यग् दिशा का सुबोध प्राप्त होता है. अतः सन्त का जीवन एक आलोकस्तंभ है. उसके चारों ओर प्रकाश-किरणें बिखर रही हैं. सन्तसंस्कृति के प्रभाव से भारत का समग्र भाग प्रभावित है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक व अटक से कटक तक सर्वत्र सन्तजीवन का सौरभ परिव्याप्त है. दक्षिण भारत के जीवट के सन्त, गुजरात व महाराष्ट्र के भक्तिपरायण संत, पंजाब के, उत्तर भारत के व मध्यभारत के संतों की कीर्तिकथा और गौरवगाथा सुनकर आज भी किस भद्र भावना वाले व्यक्ति का मस्तक श्रद्धानत नहीं हो जाता है ? और फिर राजस्थान तो एक प्रकार से सन्तों का ही देश है. तप, त्याग की विख्यात रण भूमि राजस्थान के उद्भट अलबेले मस्त सन्त जो अपनी जीवन-ज्योति से जन-जन के मन को जागृत करते रहे हैं--कौन उन्हें भुला सकेगा? जैन जगत् के सन्त, श्री आनन्दघन जी, योगिराज श्रीदेवचन्द्र जी जैसे पण्डित पुरुष और श्रीयशोविजयजी जैसे विद्वान् सन्त एवं भक्ति के अद्वितीय कवि विनयचन्द्र जी, भूधर जी, द्यानत व दौलतराम जी एवं बनारसीदासजी जैसे अमर सन्त जैन समाज में भक्ति युग के यशस्वी कवि हुए हैं. राजस्थान सन्तभक्तों का देश है. राजस्थान, जिसमें प्रेमदीवानी, स्नेहविह्वल मीराबाई की सरस स्वर-लहरी समस्त भारत में गूंज रही है, जिस राजस्थान में दादू की उदात्त विचारधारा, जिससे राष्ट्रीय कवि रवीन्द्र भी प्रभावित हुए हैं, वीर राजस्थान के उन आध्यात्मिक वीर सन्तों की अमर देन चिर नवीन है. राजस्थान इसीलिये 'वीर राजस्थान' के रूप में अमर है कि यहाँ के निवासी अन्याय के लिये रण में अद्भुत पराक्रम भी दिखा सकते हैं और समय आने पर संयम के रण में भी उसी वीरता से आगे बढ़ते हैं. जब तक राजस्थान के सन्तों का जादूभरा संगीत राजस्थानियों की हत्तंत्री के तारों को झंकृत करता रहेगा, तब तक निःसंदेह वे समस्त उर्जस्वल अतीत को साकार करते रहेंगे. ylami BREAN Fal HIVAVIKRIT RUITMANSITTINLDER t ... MAITHILI ||1||... 2 . Himottanjinitition.imar A m 11111111111...* Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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