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________________ श्रीजयभनयान जैन एडवोकेट वेदोत्तरकाल में ब्रह्मविद्या की पुनर्जागृति जन्मेजय की मृत्यु के बाद जब उत्तर के नागवंशी क्षत्रियों के आये दिन के हमलों ने कुरुक्षेत्र के कौरवों की राष्ट्रीय सत्ता को छिन्न-भिन्न कर दिया और सप्तसिन्धु देश तथा मध्यदेश में पुनः भारत के नागराज घरानों ने अपनी-अपनी राष्ट्रीय स्वतन्त्रता को प्राप्त किया तो कौरव वंश की संरक्षकता के अभाव में वैदिक संस्कृति को बहुत धक्का पहुँचा. गान्धार से लेकर विदेह तक समस्त उत्तर भारत में पहले के समान पुनः श्रमणसंस्कृति का उभार हो गया. इसी ऐतिहासिक स्थिति की ओर संकेत करते हुए हिन्दू पुराणकारों ने लिखा है कि भारत का प्राचीन धर्म, जो सतयुग से जारी रहता चला आया है, तप और योगसाधना है. त्रेतायुग में सबसे पहले यज्ञों का विधान हुआ, द्वापर में इनका ह्रास होना शुरु हो गया और कलियुग में यज्ञ का नाम भी शेष न रहेगा.' मनुस्मृतिकार ने भी लिखा है कि सतयुग का मानवधर्म तप है, वेता का ज्ञान है, द्वापर का यज्ञ है, कलियुग का दान है.२ इस सम्बन्ध में यह बात याद रखने योग्य है कि हिन्दू पुराणरचयिताओं तथा ज्योतिष ग्रन्थकारों की मान्यता के अनुसार कलियुग का आरम्भ महाराज युधिष्ठिर के राज्यारोहण-दिवस से गिना जाता है. इस राज्यारोहण का समय लगभग १५०० ई० पूर्व माना जाता है.४ इस तरह जन्मेजय के बाद राष्ट्रीय संरक्षण उठ जाने के कारण और सांस्कृतिक वैमनस्यों से ऊब कर जब वैदिक ऋषियों का ध्यान भारत की आध्यात्मिक संस्कृति की ओर गया, तो वे उसके उच्च आदर्श, गम्भीर विचार, संयमी जीवन और त्याग-तप-साधना से ऐसे आनन्द-विभोर हुए कि उनमें आत्मज्ञान के लिये एक अदम्य जिज्ञासा की लहर जाग उठी.५ अब उन्हें जीवन और मृत्यु की समस्यायें विकल करने लगी. अब उनके मानसिक व्योम में प्रश्न उठने लगे-ब्रह्म अर्थात् जीवात्मा क्या वस्तु है ? इसका क्या कारण है ? यह जन्म के समय कहां से आता है ? यह मृत्यु के समय कहां चला जाता है ? कौन इसका आधार है ? कौन इसकी प्रतिष्ठा है ? यह किस के सहारे जीता है ? किस के सहारे बढ़ता है ? कौन इसका अधिष्ठाता है ? कौन इसे सुख दुख रूप बर्ताता है ? कौन इसे मारता और जिलाता है. अब ऋक्, यजुः, साम, अथर्व वैदिक संहितायें और शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष सम्बन्धी षट्क १. महाभारत शान्ति पर्व अ० ३३५. २. तपः परं कृतयगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते, द्वापरे यज्ञमेवाहुः दानमेकं कलौ युगे | मनुस्मृति-१-८६. ३. महाभारत आदि पर्व २.१३ । महाभारत वन पर्व १४६-३८. आर्य भटीयम् प्रथम पाद श्लोक ३–(इस ग्रन्थ का रचियता वृद्ध आर्य भर ईसा की पांचवों सदो का महान् ज्योतिषज्ञ हैं). ४. श्रीजयचन्द्र विद्यालंकार-"भारत के इतिहास की रूपरेखा"-जिल्द ११६६३, पृष्ठ २६१-२६३. ५. अथातो ब्रह्मजिज्ञासा-ब्रह्मसूत्र १.१.१.। ६. किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाताः जीवाम केन च संप्रतिष्ठाः, अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम् ।।---श्वेताश्वतर उप०१.१. Jaindu elnary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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