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________________ बंशीधर : जैनदृष्टि से मनुष्यों में उच्च-नीच व्यवस्था का आधार : ४८३ कर्मभूमि के मनुष्यों में ब्राह्मणवृत्ति, क्षात्रवृत्ति और वैश्यवृत्ति को जैन संस्कृति की मान्यता के अनुसार उच्चगोत्र की नियामक और शोवृत्ति तथा म्लेच्छवृत्ति को नीचगोत्र की नियामक सभा चाहिए. एक बात और है कि वृत्तियों के सात्विक, राजस और तामस ये तीन भेद मानकर ब्राह्मणवृत्ति को सात्विक, क्षात्रवृत्ति और वैश्यवृत्ति को राजस तथा शौद्रवृत्ति और म्लेच्छवृत्ति को तामस कहना भी अयुक्त नहीं है. जिस वृत्ति में उदात्त गुण की प्रधानता हो वह सात्विकवृत्ति, जिस वृत्ति में शौर्यगुण अथवा प्रामाणिक व्यवहार की प्रधानता हो वह राजसवृत्ति और जिस वृत्ति में हीनभाव अर्थात् दीनता या क्रूरता की प्रधानता हो वह तामसवृत्ति जानना चाहिए. इस प्रकार ब्राह्मणवृत्ति में सात्विकता यात्रवृत्ति में शौर्य वैश्यवृत्ति में प्रामाणिकता शोद्रवृत्ति में दीनता और म्लेच्छति में क्रूरता का ही प्रधानतया समावेश पाया जाता है. इन तीन प्रकार की वृत्तियों में से सात्विक वृत्ति और राजसवृत्ति दोनों ही उच्चता की तथा तामसवृत्ति नीचता की निशानी समझना चाहिए. 2 इस लेख में हमने मनुष्यों की उच्चता और नीचता के विषय में जो विचार प्रगट किये हैं उनका आधार यद्यपि आगम है फिर भी यह विषय इतना विवादग्रस्त है कि सहसा समझ में आना कठिन है. अतः विद्वानों से हमारा अनुरोध है कि वे भी इस विषय का चिन्तन करें और अपनी विचारधारा के निष्कर्ष को व्यक्त करें. यद्यपि इस विषय पर कर्मसिद्धान्त की दृष्टि से भी विचार किया जाना था परन्तु लेख का प्रस्तुत लेख में मैंने जो कुछ लिखा है उसमें भी संकोच की नीति से काम लेना पड़ा है. प्रसंगानुसार ही लिखने का प्रयत्न करूंगा. कि Jain Education International For Private & Personal Use Only कलेवर इतना बढ़ चुका है अतः अतिरिक्त विषय कभी www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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