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________________ जैन मुनि की पावन स्मृति में प्रस्तुत ग्रंथ प्रकाशित किया जारहा है, अतः स्वाभाविक ही है कि इसमें जैनदर्शन, जैनधर्म, जैन इतिहास-पुरातत्त्व की प्रधानता हो, किन्तु राजस्थान से प्रकाशित होने के कारण राजस्थानी साहित्य एवं साहित्यकारों को विशेष रूप से स्थान दिया गया है. राजस्थान में भी अजमेर-संभाग के प्रमुख नगर ब्यावर से यह ग्रंथ प्रकाश में आरहा है, अतएव अजमेर के समीपवर्ती साहित्यकारों का परिचय देना भी उचित समझा गया है. जैन साहित्यकारों ने भारतीय और विशेषतः राजस्थानी साहित्य की जो महत्त्वपूर्ण सेवा की और उसकी समृद्धि में असाधारण योग दिया है, उसका संकलित विवरण आप इस ग्रंथ में पाएँगे. जनेतर विद्वानों को तो जैनदर्शन, धर्म, साहित्य आदि का विशिष्ट परिचय ग्रंथ से मिलेगा ही, जैन विद्वानों को भी बहुत-सी नवीन बातें जानने को मिलेंगी. शोधक विद्वानों के लिए अगर कुछ अंशों में भी यह ग्रंथ सहायक बन सका, जैसी कि आशा है, तो किया हुआ परिश्रम सफल समझा जाएगा. प्रत्येक विषय में विद्वानों में मतभेद रहे हैं और रहेंगे, किन्तु जिसने अपने जीवन में अनेकान्त को अपनाया है, वह मतभेदों के प्रति असहिष्णु नहीं होता. वह धैर्य के साथ विरोधी विचार को सुनता-समझता है और उचित रीति से उसका प्रतिविधान करता है. प्रकृत विशाल ग्रंथ में ऐसी अनेक बातें हो सकती हैं जिनसे हम सहमत न हों, फिर भी विचारणा एवं गवेषणा की परिधि आगे बढ़े, इस दृट्टिकोण से उन्हें यहाँ स्थान दिया गया है. विचारशील विद्वान् भी उन्हें इसी रूप में ग्रहण करेंगे, ऐसी आशा है. हमारी सीमा ग्रंथगत सामग्री-संचयन तक ही रही है. ग्रंथ को सुष्ठु और कलात्मक सौन्दर्य प्रदान करने का कार्य शिल्पसम्पादक के जिम्मे था. उन्होंने अपनी विशिष्ट कलारुचि एवं लगन के साथ ग्रंथ को सज्जित करने का प्रयत्न किया है. सफलता का मापदण्ड पाठकों के हाथ में है. विद्वत्तिलक मुनि श्रीकान्तिसागरजी-[उदयपुर] से हमें जो सहयोग और परामर्श मिला, उसी की बदौलत ग्रंथ इस रूप में पाठकों के समक्ष आ सका है. उनका मूल्यवान् सहयोग सदैव स्मरणीय रहेगा. अन्त में विद्वान् लेखकों एवं सहयोगी सम्पादकों का आभार मानना उचित है जिनके समन्वित सहकार से यह भगीरथ कार्य सम्पन्न हो सका है. ग्रंथ की मुद्रण प्रगति में प्रेस के व्यवस्थापक एवं कर्मचारियो ने भरसक प्रयत्न किया है. विशेषतः प्रदान मशीनमैन श्री भवानसिंह जी और श्रीबलदेव कृष्ण सूरी के कठिन परिश्रम को विस्मरण नहीं किया जा सकता. –शोभाचन्द्र भारिल्ल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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