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________________ विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : १०३ कलाकार की कृति उसके अनुभव के बल पर ही हमारे नेत्र का सौंदर्याधार बनती है. परम श्रद्धेय श्रीहजारीमलजी महाराज भी अपने अनुभव के बल पर संयम के महामार्ग पर अग्रसर हुए थे. उन्होंने अनुभव की प्रयोगशाला में अपने आपको निर्भय होकर प्रविष्ट कर दिया था. तप करना उत्तम है. पर क्यों उत्तम है ? इसका अनुभव तो तप करके ही किया जा सकता है. इसीलिये उन्होंने नाना प्रकार के तप तपे, बाल्यकाल से ही उन्होंने संयमीय जीवन के नाना प्रयोग प्रारम्भ कर दिये थे. प्रतिफल यह आया कि वे एक विशिष्ट सन्त-रत्न के रूप में हम सब की श्रद्धा के आधार बने. उन्हें मैंने मरुभूमि में शान्ति, क्षमा, ध्रुवधैर्य, कष्टसहिष्णु और करुणा के साकार रूप में देखा था. जिस दिन मैंने इन रूपों में उनके दर्शन किये थे, तभी से उनके प्रति मेरे हदय में अपार श्रद्धा उत्पन्न हुई थी. ज्यों-ज्यों कालक्रम बढ़ा मेरी श्रद्धा भी वर्षमान होती गई. आज मेरी श्रद्धा के उस आधार को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मनमें बार-बार एक प्रश्न उभर रहा है-अब मेरी श्रद्धा का नया आधार कौन बनेगा ? मुनि श्रीसौभाग्यमलजी महाराज, मालवकेसरी 并深深業来就带来深港来客来来来来来来来解 सौम्यस्वभाव सन्त जैनदर्शन के विद्वान्, लोकप्रिय मुनिराज पूज्य श्रीहजारीमलजी के दर्शन का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था. उनके सौम्यस्वभाव की छाप मेरे हदय पर आज भी गहरी अंकित है. पिछले वर्ष महाराजश्री के स्वर्गवास की सूचना सुनकर मन को गहरी व्यथा का अनुभव हुआ. लेकिन सोचता हूँ-इस अनन्त-पथ पर एक न एक दिन तो सभी को सुनिश्चित जाना है ! यही सोचकर चुप हो रहता हूँ. उनका सम्पूर्ण जीवन जनहित और मानवता के नैतिक जागरण में बीता. मुझे विश्वास है कि महाराजश्रीका 'स्मृतिग्रंथ' जनसमुदाय के लिए अवश्य ही लाभप्रद सिद्ध होगा. इस शुभ प्रयत्न की मैं हदय से सफलता चाहता हूँ. श्रीमूलचन्द्रजी देशलहरा आचार के गौरीशंकर मुनि श्रीहजारीमलजी की स्मृति में एक ग्रंथ प्रकाशित करने के आयोजन का मैं हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ. सन्त जनों का जीवन सार्वजनिक कल्याण के लिए समर्पित होता है. अतः उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना समाज का कर्तव्य है. उन्होंने ११ वर्ष की अवस्था में सांसारिक प्रलोभनों की ओर से मुंह मोड़ कर तपश्चर्या का मार्ग अंगीकार किया था और ६४ वर्ष तक लगातार उसी पर अग्रसर होते गये. अपनी अखण्ड साधना से उन्होंने त्याग और तपस्या का जो ऊँचा आदर्श प्रस्तुत किया वह वास्तव में अद्भुत है. आज हम सब भौतिकता की साधना में लीन हैं और पश्चिम की हवा ने हमारे मापदण्ड बदलकर, ऐसे बना दिये है कि जीवन की सफलता भौतिक-उपलब्धियों में आँकने लगे हैं. पर सच यह है कि हम जिसके पीछे दौड़ रहे हैं, वह छाया मात्र है, उस में सार नहीं है. मुनिश्री ने बताया कि वास्तविक आनन्द की सिद्धि भोग में नहीं है, त्याग में है और व्यक्ति का जीवन कृतार्थ तब बनता है, जब कि उसके कदम उत्तरोत्तर ऊँचाई की ओर बढ़ते हैं. जो साधना की चोटी पर पहुँच जाते हैं, वे जानते हैं कि ऊँचाई का कितना निराला आनन्द और कितना सुख होता है. मुनिश्री ने इस मर्म का उपदेश केवल शब्दों में नहीं दिया. आचरण से भी उसका दर्शन कराया. 08) ____Jain For Private & Personal www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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