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________________ :米粥粥譯辦業萧鼎鼎恭洪荣端業蒂菜端 १०४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय जिनकी कथनी और करनी समान हो, ऐसे सत्पुरुष आज के युग में विरल हैं. पर जितने भी हैं, यह संसार उन्हीं पर टिका है. मुनिश्री के प्रति मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और आशा करता हूँ कि जिन गुणों के कारण हम उनका स्मरण और अभिनन्दन करते हैं, वे गुण जन-जन में अवश्य फैलेंगे और आज का संतप्त मानव उनसे प्रेरणा ग्रहण कर सही मूल्यों की ओर अग्रसर होगा. श्रीयशपालजी जैन मेरी श्रद्धा मेरा मन राजस्थान के पूज्य श्रीहजारीमलजी महाराज का आध्यात्मिक जीवन अत्यन्त महान् और ऊंचा था. वे हृदय के अत्यन्त सरल और विमल थे. संसार में संतों की आध्यात्मिक पूंजी ही मनुष्य को सुख दे सकती है. दुःख से त्राण कर सकती है. मुनिश्रीजी आत्मयोगी और परमज्ञानी थे. उनके ज्ञान और आत्म-योग पर राजस्थान का अधिकांश श्रद्धालुवर्ग गहरी आस्था और निष्ठा रखता था. उनसे उन्होंने जो पाया वह उनके आत्म-सुख का परम कारण है. आज उनके अभाव में उनका श्रद्धालुवर्ग एक अभाव की अनुभूति कर रहा है. पीड़ा का अनुभव करता है. परन्तु दुःख जैसी क्या बात है? उनकी विरासत को अपने जीवन में नैतिक आचरण के द्वारा खूब उतारें, उसकी सुरक्षा करें, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है. मेरा मन ! मेरी श्रद्धा, मेरा विश्वास, ऐसे सन्त चरणों का दास है ! श्रीजगन्नाथजी नाहर वे क्या थे? करुणा के असीम सागर, शान्ति के निर्भय प्रचारक, अध्यात्मवाद के प्रबल प्रसारक, अति सरल, सत्य के तेज पुञ्ज, छलकपट से अनभिज्ञ, प्रवीण संगठनकर्ता, अडिग कर्तव्यपरायण, उच्चकोटि के सादगी प्रिय, क्रोध से सहस्रों कोस दूर स्याबाद के सच्चे अनुयायी, शास्त्र-ज्ञान के निरभिमानी पंडित और थे वे अहिंसा के अमर पुजारी मुनि श्रीहजारीमलजी महाराज. ऐसे सन्त जन-जन वंद्य होते हैं. उनको मेरे अनेकों प्रणाम ! श्री मिलापचन्द्र भुरट, बी. एस-सी० ए-जी० - तुम केवल श्रद्धा हो! पूज्य पुरुष मंत्री श्रीहजारीमल जी म० भी जीवन के राहभूले पथिकों को जीवन-दर्शन कराने वाले थे. वे निरन्तर अपने सात्विक विचारों से उनका पथ आलोकित करते रहे-संयमीय जीवन की शुरूआत से-आखिर तक. वे स्वभाव के सरल, मन के निर्मल, तन के तपस्वी और शुद्ध सन्ताचरण के हामी थे. प्राणीमात्र का कल्याण उनका काम्य था. मैंने उस पुनीत आत्मा के अनेक बार शुभ दर्शन किये थे. जब-जब भी उनके दर्शन किये तब-तब मैंने यही अनुभव किया था. सम्प्रदाय विशेष में रह कर भी उनके विशाल हृदय में संकीर्ण विचारों VOCARDCWCWCH AMARVASNA .9. 9 Jain Education OF PTIVate a Personar use only 1 www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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