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________________ आशीर्वचन एवं शुभकामनायें पंडित जी न केवल १९८१ के गजरथ में आये, अपितु उन्होंने बिलहरी से क्षेत्र को कलचुरि-कालीन जैन मूर्तियाँ दिलाने में भी हमारी सहायता की। इसी अवसर पर पंडित जी के 'अध्यात्म अमृत कलश' का आ० विद्यासागर जी के सानिध्य में, विमोचन हुआ था। १९८२ में मुनि पार्श्वसागर-विवाद के समय भी पंडित जी के आगमन ने क्षेत्र कमेटी का उत्साह बढ़ाया था। उस समय समाज से उन्होंने कहा था, "हम महावीर के उत्तराधिकारी हैं। वैराग्य के समय उन्होंने जो छोड़ा, उसे हमने ग्रहण किया ( राग, द्वेष, कषाय आदि ) और जो उन्होंने ग्रहण किया, उसे ग्रहण करने में हम सदैव कतराते रहे। तीर्थ क्षेत्रों पर तो हम बिना लड़े रह ही नहीं सकते । महावीर के नाम पर यह सब दूर होना चाहिये ।" उनके भाषण का बड़ा प्रभाव पड़ा और समस्या क्षणों में ही समाप्त हो गई। सन् १९८३ में भी पंडित जी ने शांतिनाथ जिनालय के नवीन फर्श का उद्घाटन साहू श्रेयांस प्रसाद जी की उपस्थिति में किया था। . खजुराहों के समान भारत के समस्त दि. जैन तीर्थों के संरक्षण व विकास में पंडित जी सहायक रहे हैं। फिर भी, बुंदेलखंड के तीर्थों की तो उन्होंने महती सेवायें की हैं। मुझ जैसे सामाजिक कार्यकर्ता को पंडित जी के स्नेह और आशीर्वाद का महान् संबल रहा है। वह स्नेह और आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहे, यही वीर प्रभु से कामना है। एक निष्ठव्रती विद्वान् खुशाल चंद्र गोरावाला, काशी गुरुत्व के धनी आधुनिक दि० जैन पाण्डित्य के स्रोत पूज्यवर श्री १०५ गुरुवर गणेश वर्णी महाराज थे। इन्होंने स्वयं प्रथम छात्र होकर वाराणसी में स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थापना पं० अम्बादास शास्त्री के आचार्यत्व में की थी। यह लोकोत्तर घटना जैन समाज के इतिहास में युग परिवर्तन का ओंकार थी। फलत: देखते-देखते स्वयंभू पंडित गुरु गोपाल दास जी के आचार्यत्व में सिद्धान्त जैन विद्यालय मुरैना के आविर्भाव ने श्रीमानों को इस दिशा में प्रेरित किया। इससे इन्दौर, सहारनपुर आदि के विद्यालयों के समान संस्थायें स्थापित हुयी । इससे आंचलिक पाठशालाओं ने भी गुरुवर गणेश वर्णी से प्रेरणा पाई और चारों प्रधान विद्यालयों के लिए छात्र-सहयोग दिया। जगन्मोहनमय जैन-जग जानी दि० जैन पाण्डित्य की दूसरी पीढ़ी के प्रमुख विद्वानों में से पं० जगन्मोहन लाल जी को मध्य भारत क्या, पूरे भारत को देने का श्रेय कटनी के विद्यालय को उतना ही है जितना कि पंडित जी के औघड़ मनस्वी, अतिसाहसी तथा गुरुवर गणेश वर्णी के दीक्षा गुरु गोकुल दास जी को इन्हें कटनी के तत्कालीन संभ्रान्त स्व० दादा जी के दि० जैन परिवार में मिलाने का था। यह गणेश वर्णी के दीक्षागुरु के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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