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________________ पं० जगमोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ मुझे जबलपुर में सेठ हरिश्चन्द्र सुमेरचंद्र के मकान में पंडित जी, फूलचंद जी, देवकीनंदन जी व कैलाश चंद जी की हास-परिहास एवं विद्वत्तापूर्ण गोष्ठी देखने का सौभाग्य मिला। तभी मैंने अनुभव किया कि मनुष्य को पूर्णता प्राप्त करने के लिये मस्तिष्क, हृदय और श्रम-तीनों की संतुलित समायोजना आवश्यक है । यही तो राज पथ है, यही त्रिवेणी है । पंडित जी को समाज के सभी व्रती एवं साधुजनों का सत्संग मिला है। यही नहीं, वर्तमान में सभी दिगंबर जैन साधुगण अपनी शास्त्रीय शंकाओं एवं प्रवृत्तियों के संबंध में आपसे चर्चा करते हैं। आ० विद्यासागर जी ने तो आपको आपातकालीन आगमज्ञ के रूप में ही मान्यता दे रखी है। हमारी समाज का अहोभाग्य है कि हम उनके मार्गदर्शन में रह रहे हैं । हम सभी उनके स्वस्थ और स्वशासी जीवन की कामना करते हैं। प्रकाश और ऊष्मा के अजस्त्र स्त्रोत दशरथ जैन अध्यक्ष, खजुराहो क्षेत्र कमेटी, छतरपुर, म. प्र. पंडित जी का नाम लेते ही ऐसी भव्य और सौम्य पुरुषाकृति सामने आती है जिसने जैन-विद्या का समुद्र-मंथन की भांति गहन अध्ययन, चिंतन व मनन कर न केवल त्रिरत्न खोजे, अपितु उन्हें अपने जीवन में उतारने की चेष्ट की। उन्होंने सदैव सत्य को अविचलित रहकर निर्भीकता एवं दृढ़ता के साथ अभिव्यक्ति दी और आवश्यकता पड़ी तो अपने विश्वास और निष्ठाओं के लिये कष्ट भी उठाये। उन्हें आलोचनायें विचलित नहीं कर सकीं और प्रलोभन पथभ्रष्ट नहीं कर सके। अध्यात्म की मर्मज्ञता से उत्पन्न स्व-पर विवेक एवं अध्ययन-अध्यापन की वृत्ति के फलस्वरूप उनमें एक विशेष नैतिक एवं आध्यात्मिक निखार आया है जिससे उनकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता में कल्पनातीत वृद्धि हुई है। इसी कारण साधुजन, विद्वज्जन एवं श्रेष्ठिजन कठिन समय में उनका परामर्श लेना उचित समझते हैं। उनकी भाषा बड़ी संयमित, सीमित, मधुर एवं स्पष्ट होती है। उन्होंने अनेक रूपों में समाज की सेवा की है। इनमें जैन तीर्थों की रक्षा-व्यवस्था एवं प्रगति में योगदान करना भी संमिलित है। इस कार्य में वे ज्योतिपुंज तो रहे ही हैं, कार्यकर्ताओं के संबल भी रहे हैं। वस्तुतः वे प्रकाश और ऊष्मा के अजस्र स्रोत हैं और उनमें दोनों का सुन्दर समन्वय नजर आता है। पंडित जी अनेक बार खजुराहो पधारे और उन्होंने सदैव इस क्षेत्र के संरक्षण और संवर्धन में अपना योगदान किया है। १९६९ में साहू शांति प्रसाद जी खुजराहो आये थे। उस समय पंडित जी भी पधारे थे। वे पंडित जी के बड़े भक्त थे। यह पंडित जी की ही कृपा थी कि उनके सत्परामर्श से साहू जी ने खजुराहो क्षेत्र पर संग्रहालय एवं धर्मशाला के निर्माण के लिए स्वीकृति दी थी। म०प्र० तीर्थक्षेत्र कमेटी के गठन के अवसर पर भी पंडित जी यहाँ आये और उनके चतुर सत्परामर्श से ही श्री देवकुमार सिंह काशलीवाल का अध्यक्षीय चुनाव हुआ था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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