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________________ जैन शास्त्रों में वैज्ञानिक संकेत २३३ १. लोक पूजित किसे माना जाय ? २. लोक का क्या अर्थ है ? ३. निन्दित कुल किसे कहा जाय ? ४. सन्तान क्रम से तात्पर्य कितनी पीढ़ियों से सदाचार देखा जाय ? ५. देव, नारकी और पशुओं में कुल की व्यवस्था है, तब उनके गोत्र के लक्षण क्या बनाये जायें ? क्योंकि मूलाचार में कुल का लक्षण स्त्री-पुरुष संतान किया है। उच्च गोत्र वाला नीच आचरण करके नीच गोत्रीय हो जाता है। उच्च गोत्र कर्म का सर्व संक्रमण होता है, पर नीच गोत्रीय उच्च आचरण करे, तो संक्रमण तो होगा पर सर्व संक्रमण नहीं होगा। तब व्याख्यायें कैसे बनेंगी ? इसी प्रकार संतान क्रम के सन्दर्भ में यदि अनादिकाल का सन्तान क्रम लिया जाय, तो किसी कूल के सदाचरण की परीक्षा कैसे होगी? बवधान-विद्या अवधान-विद्या कोई जादू या वाजीगरी नहीं है । यह बहुत सहज साधना है और अभ्यास से सीखी जा सकती है। इसके लिये चित्त की एकाग्रता को साधा जाता है । इसके लिये मन की चंचलता को समझने की जरूरत है। चंचलता के कारण ही प्रश्न को ग्रहण करने की क्षमता भंग हो जाती है और स्मृति कमजोर हो जाती है। ____ अवधान का अभ्यास ध्यान पद्धति से किया जाता है । ध्यान की कई पद्धतियाँ हैं पर जैन पररम्परा के अनुसार तेरापंथ धर्मसंघ ने प्रेक्षाध्यान पद्धति का विकास किया है । स्मृति की निरन्तरता ध्यान से आती है । इसके अनेक सूत्र हैं। प्राचीन ऋषि और मुनियों को खगोलशास्त्र की गुत्थियों को सुलझाने के लिये लम्बी लम्बी संख्याओं को याद रखने की जरूरत पड़ती थी। अबधान के माध्यम से ही वे ये संख्यायें याद रखते थे। लेखन और मुद्रण के विकास से अवधान की आवश्यकता कम समझी जाने लगी। इससे व्यक्ति की चेतना कंठित होने लगी। तीर्थंकर महावीर ने स्मृति को चेतना का एक गण माना है। भगवती और आचारांग में स्मृति के अवधान के अनेक सूत्र दिये गये हैं। ये अन्य जैन आगमों में भी मिलते हैं। भगवान् महावीर की वाणी को नौ सौ साल तक लिपिबद्ध नहीं किया जा सका। आचार्यों की अवधान साधना से ही बह पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुरक्षित रखी जा सकी। यदि यह विद्या न होती, तो ज्ञान की महत्वपूर्ण परम्परायें विलुप्त हो जाती और शोध के लिये परिकल्पनाओं का भी अभाव हो जाता। अवधान-साधकों के अनेक रूप होते हैं । शास्त्रों में शतावधानी, पंचशतावधानी, सहस्रावधानी एवं लक्षावधानी साधकों का विवरण पाया जाता है । आज के कंप्यूटर-युग में प्राचीन अवधान-विद्या एक विस्मयकारी साधना है। इससे अंक स्मृति, भाषा स्मृति, गणितीय पंचधात, मूल शोधन, सर्वतोभद्र यंत्र, समानांतर योग तथा स्मरण शक्ति के अनेक प्रयोग और समाधान अल्पकाल में ही किये जा सलते हैं। __ मुनि महेन्द्र कुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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