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________________ वर्ण : पदार्थ का एक अभिन्न गुण डा० अनिल कुमार जैन सहायक निदेशक ( आगार ), तेल एवं प्राकृतिक गैस गैस आयोग, अंकलेश्वर ३९३०१० ( गुजरात ) वर्ण : जैन दृष्टि जैन धर्मानुसार सम्पूर्ण विश्व ( लोक ) छह द्रव्यों से मिलकर बना हुआ है। ये है-जीव, पूद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल । इन सबमें मात्र पुद्गल ( पदार्थ ) ही एक ऐसा द्रव्य है जो रूपी है, जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण, ये चार गुण पाये जाते हैं । यहाँ रूपी का अर्थ दृश्यमान ही नहीं है बल्कि रूपी का अर्थ है कि उक्त चारों गुणों का एक साथ होना । पुद्गल ही एक ऐसा द्रव्य है जिसे इन्द्रियों द्वारा पहचाना जा सकता है । अन्य पाँच द्रव्यों में उक्त चार गुणों का अभाव होने से वे अरूपी कहलाते हैं । चाहें पुद्गल स्कन्ध रूप हो या परमाणु के रूप में हो, उपरोक्त चारों गुण उनमें अवश्य होंगे। यहां हम पुद्गल के वर्ण गुण की ही चर्चा करेगें। वर्ण पदार्थ का एक मूलभूत गुण है। वर्ण पाँच प्रकार के होते हैं-नीला, पीला, लाल, सफेद, काला । प्रत्येक भौतिक पिण्ड में इनमें से कम से कम एक वर्ण अवश्य होगा। मिश्रण के रूप में पदार्थ में एक से अधिक रंग भी हो सकते है। लेकिन ऐसा कोई पदार्थ नहीं हो सकता जिसमें कोई रंग न हो । परमाणु में भी पांच रंगों में से कोई एक रंग अवश्य होगा ही। यदि हम इन रंगों के बारे में कुछ गहराई से सोच, तो ये रंग अनन्त भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर एक परमाण में एक इकाई कालापन या दो इकाई कालापन इत्यादि-इत्यादि, अनन्त इकाई कालापन तक हो सकता है। इस प्रकार रंग भी अनन्त प्रकार के हो सकते हैं । यहाँ पर एक बात ध्यान देने को यह है कि रंगों को तीब्रता अलगअलग हो सकती है, लेकिन परमाणु का रंग इन पांच में से कोई एक ही हो सकता है । लेकिन स्कन्ध का रंग उक्त पांच रंगों से अलग हो सकता है। दो या दो से अधिक परमाणु आपस में मिलकर स्कन्ध बनाते हैं । परमाणु अलग-अलग रगों के हो सकते है। पर स्कन्ध का रंग इन परमाणु के रंगों पर निर्भर होता है। अलग-अलग तोब्रता के परमाणुओं के रगों के मिश्रण पर ही स्कन्ध का रंग आधारित होता है। प्रकाश तथा रंग आधुनिक विज्ञान रंगों की व्याख्या प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के आधार पर करता है। बैज्ञानिक मैक्सवैल के अनुसार प्रकाश विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा है । प्रकाश का संचरण तरंगों के रूप में होता है । ये सभी तरंगें प्रकृति में विद्युत-चुम्बकीय होती है तथा इनका वेग नियत होता है जिसका मान 3x1010 सेमी/सेकिन्ड होता है। इस प्रकार, प्रकाश को इन विकिरणों के रूप में पारिभाषित कर सकते हैं जो कि आँख को प्रभावित करते हैं । दृश्य स्पैक्ट्रम की तरंग दैर्यों की न्यूनतम तथा अधिकतम सीमा निर्धारित करना बहुत कठिन है, फिर भी वे लगभग 0.00043 मिमी० तथा 000069 मिमी० हैं। आँख इन सीमाओं के बाहर के विकिरणों को भी देख सकतो है बशर्ते वे बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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