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________________ ३] उपमान १. कोड़ा २. शक्ति ३. अग्नि ४. बज्र ५. कवच ६-७. आयुध, खङ्ग ८. सूर्य ९. जहाज १०. अमृत ११. यष्टि १२. बल १३. छाया १४. सरोबर १५. गर्भगृह १६. औषधि १७. दुग्धपान १८. अन्न १९. नौका २०. शीतल जलधारा सारणी २ : ध्यान के उपमान कार्य इन्द्रिय कषाय घोड़ों पर नियन्त्रण इन्द्रिय-बाणों का वारण जीव-लौह शुद्ध होता है, कर्म धृत जलता है, पाप-वन नष्ट होता है, कषाय शीत शांत होता है। पाप वृक्ष को काटता है कषाय-योद्धा से रक्षा करता है कषाय योद्धा / मोह शत्रु को नष्ट करता है। रागादि अन्धकार को दूर करता है संसार-सागर को पार करता है मोह निद्रानाश, समत्व लक्ष्मी प्राप्ति Jain Education International कपाय-यात्रु से रक्षा कषाय सेना को जीतता है कषाय धूप का शमन कषाय-दाह का शमन कवाय वायु का अवरोध कषाय-रोग शमन कषाय-रोग नाश विषय भूख का शमन अविद्या नदी को पार करना आत्मशांति लाता है । ध्यान का शास्त्रीय निरूपण ११७ ध्यान का विशिष्ट विवरण ध्यान की परिभाषा के साथ ही, अनेक ग्रन्थों में उसका अनेक शीर्षकों के अन्तर्गत विस्तृत विवरण पाया जाता है। ध्यान का अधिकारी कौन है ( ध्याता) ? ध्यान का ध्येय (आलम्बन, लक्ष्य) क्या है ? ध्यान के प्रकार (भेद) और प्रक्रिया क्या है ? ध्यान का फल क्या है ? ध्यान काल क्या है ? इन प्रश्नों का उत्तर ही ध्याता, ध्यान, ध्येय, ध्यानफल एवं काल शीर्षकों के अन्तर्गत दिया जाता है । कहीं-कहीं इन शीर्षकों की संख्या आठ तक दी गई है। हम अपना निरूपण पाँच शीर्षकों में करेंगे। संदर्भ (i) भगवती आराधना गाया ८४१-४३ गाथा १३९२, ९७ गाथा १८८६ ९६ समयसार २३३ (ii) (iii) ज्ञानार्णव १/२३, १३/३, ५, ६ / २८ । (iv) आत्मप्रबोध : ३९, ४९ (अ) ध्यान का अधिकारी, ध्याता (१) प्रवृत्तियों का आधार जैन शास्त्रों में ध्याता संबंधी चर्चा मनोवृत्ति, संहनन एवं गुणस्थानों के आधार पर की गई है । प्राचीन शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, ध्यान वही कर सकता है जो मुमुक्षु हो, संयमी हो, जिसके शरीर के अस्थिबंध ( संहनन ) उत्तम हों, वासना से निर्लिप्त जितेन्द्रिय, धोर और मनोवशो हो । संक्षेप में, जो शुभ प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख है, वह ध्यान कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से चौथे से चौदहवें चरण का व्यक्ति प्यान का अधिकारी है। यह भी सामान्य धारणा है कि ऐसा विकास साधुचर्या से ही संभव है। अतः सामान्यतः साधुमार्गी ही For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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