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________________ कोठियाजीमें और विद्वानोंकी अपेक्षा यह विशेषता रही है कि उन्होंने जिस कामको भी अपने हाथमें लिया उस कार्यको कितनी ही परेशानी और उलझनोंके आनेपर भी उसे पूरा ही करके छोड़ा । इसी कारण वे न्याय और दर्शन जैसे सूक्ष्म और गहन विषयके कई ग्रन्थोंका हिन्दी अनुवाद कर सके । जैन दर्शन इतना गहन और जटिल है कि एक तो उसमें प्रवेश ही कठिनतासे होता है और प्रवेश होनेके अनन्तर भी दत्तचित्त होकर एकाग्रचित्तसे उसका शोधपूर्वक अनुवाद करना एक विकट क्लिष्ट कार्य है । कोठियाजीमें एक गुण यह भी रहा है कि वे समाजके किसी पक्षके वाद-विवाद में नहीं पड़े । निश्चयव्यवहार, निमित्त-उपादानकी विभिन्न स्थानोंपर और जैनपत्रों में काफी चचायें हुई किन्तु आप किसी भी पक्ष-विपक्षमें न पड़कर मध्यस्थ रहे। आपकी अध्यक्षतामें ६-७ वर्षों में जैन विद्वत् परिषदने कितनी उन्नति की, यह समाजके सामने है । समाजके सभी वर्गों के सभी विचारके विद्वानोंका एकत्रीकरण इसका ज्वलन्त उदाहरण है। आपने अपनी विचारधाराके अनुसार विद्वत्परिषदको भी समाजके पक्ष-विपक्ष के वातावरणमे दूर रखकर ठोस और एक सक्रिय रूप दिया । आपका सदा प्रयत्न रहा है कि हम ऐसे कार्य करें, जिससे समाजमें और विद्वानोंमें विघटन और विखराव न हो। श्रीगणेश प्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमालाके आप जागरूक और सक्रिय मंत्री रहे हैं। आपने अपने मंत्रित्वकालमें इस ग्रन्थमालासे कई ग्रन्थोंका प्रकाशन कर ज्ञानका प्रचार-प्रसार किया है। इस कार्य में कोठियाजीका श्रम-श्लाघनीय है। शिवपुरीमें हुए विद्वत्परिषद्के अधिवेशनके अध्यक्षके रूपमें आपकी विनम्रता, शान्तता, तटस्थता और धीरताका प्रत्यक्ष परिचय अवलोकन करनेको मिला। पहिले ही दिन चारों ओर घेरे हुए विद्वानोंने निमित्त-उपादान, निश्चय-व्यवहारको चर्चायें आपके समक्ष प्रस्तुत कर दीं। आपके बगल में ही सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्रजी बैठे थे । चर्चामें भाग लेने वाले पं० प्रकाश हितैषी दिल्ली, पं० राजमलजी भोपाल, पं० भैयालालजी बीना आदि अनेक विद्वान् थे। उस समय आप पक्ष-विपक्ष की सभी चर्चाओंको शान्तिसे सुनते रहे । अन्तमें नय-विभागको दृष्टिमें रखते हुए बड़ी धीरतासे संक्षेपमें आपने समाधान कर दिया। अधिवेशनके समय आपके काका पण्डित वंशीधरजी बीनाने अपने भाषणमें कुछ आक्षेपात्मक भाषा द्वारा एक पक्षका समर्थन करने का प्रयत्न किया, तो उसी समय कोठियाजीने विनम्रतापूर्वक उन्हें इस प्रकारसे बोलनेको रोक दिया। यह आपकी निष्पक्षताका एक अच्छा उदाहरण है। व्यक्ति और घरेल संम्बन्धकी अपेक्षा आपने समाज-हितका ध्यान सदा पहले रखा। आपकी प्रतिभा, कर्मठता, जागरूकता, कार्यसंलग्नता आदिके एक नहीं सैकड़ों उदाहरण देखनेको मिले हैं, जिनसे आपके उच्च व्यक्तित्वका परिचय मिलता है। ४५ वर्षसे आप निरन्तर एकचित्त होकर बडी लगन और सेवाभावसे जैन संस्कृति, धर्म और समाजकी सेवा कर रहे हैं । निर्लोभी : डॉ. कोठियाजी .पं० अजितकुमार जैन शास्त्री, झाँसी डॉ० कोठियाजीके जीवनसे शिक्षा मिलती है कि विद्वानोंको निर्लोभ वृत्ति जीवनमें अपनाना चाहिये । आप कई वर्षों तक विद्वत परिषदके अध्यक्ष पदपर रहे तथा विद्वानों के प्रति सौहार्दता प्रकट की है। कई संस्थाओंको वर्तमानमें तन, मन, धनसे योगदान कर रहे हैं। आपने वर्णी-ग्रन्थमालाके प्रकाशन एवं प्रचारमें अपना जीवन समर्पण कर दिया । ऐसे विद्वानका अभिनन्दन करते हये मैं अपनेको धन्य समझ रहा हैं। भगवानसे प्रार्थना है कि वह शतायु हों। -३८ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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