SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युग-पुरुषके प्रति • श्री सुरेश जैन, अवर सचिव, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल श्रीमती विमला जैन न्यायाधीश भगवान पार्श्वनाथ एवं वरदत्तादि पंच-ऋषिकी चरण-रजसे पवित्र नैनागिरिजीमें श्रद्धेय कोठियाजीने जन्म लेकर सरस्वतीके दरबारमें सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। भारतके इस अद्वितीय विद्वान-सन्तका अभिनंदन कर हम स्वयंका ही अभिनंदन कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति, विशेषतः श्रमण-संस्कृति के क्षेत्र में सरलताको इस सौम्य-मूर्तिका अवदान अनुपम एवं अनुकरणीय है । ऐसे ऐतिहासिक क्षणोंमें, जबकि नैनागिरिमें कई युगांतकारी सांस्कृतिक एवं धार्मिक परिवर्तन घटित हो रहे हैं, हम चाहते हैं कि महामहिम कोठियाजी जैसे युग-पुरुष यहाँ पधारें और इस पुण्यशीला भूमिके नव भाग्य-विधानमें अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका संपन्न करें। पार्श्व प्रभुसे प्रार्थना है कि माननीय कोठियाजी सहस्र वसंत देखें और अपने लोककल्याणकारी कृतित्व द्वारा हमारे राष्ट्र तथा समाजको उपकृत करें । प्रेरणा और स्फूर्तिके स्रोत .श्री सतीश जैन, दिल्ली डा० दरबारीलाल कोठिया बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् हैं । उन्होंने सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक और राष्ट्रीय क्षेत्रों में सेवा की है और क्रान्तिकारी भूमिकाका निर्वाह कर अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। आप सामाजिक रूढ़ियोंका विरोध करते हुए धार्मिक अन्ध-विश्वासोंकी सदैव ही आलोचना करते रहे हैं । धर्म, न्याय और आगमके सही और शद्ध रूपको समाजके सामने रखने में आप सदैव अग्रणी रहे हैं। अपनी साधना, त्याग और समर्पित निष्ठासे समाजको उज्ज्वल ज्ञान प्रदान करना आपका जीवन-लक्ष्य रहा है । डॉ० कोठिया प्राचीन परम्पराके ऐसे मूर्धन्य विद्वान् हैं, जिनमें विद्वत्ताके साथ-साथ चारित्र्य-गरिमाका भी सामंजस्य है। समन्वयवादी उदात्त विचारधाराके कुशल वक्ता, न्याय-शास्त्रके विशेषज्ञ एवं दर्शनके यथार्थ अभिव्यञ्जकके रूप में आपके व्यक्तित्वसे समाज सुपरिचित है ही । वास्तवमें आपका जीवन ही अनेक प्राणियोंके लिए प्रेरणा और स्फतिका आज स्रोत बना हआ है। जैन इतिहासमें बीसवीं शताब्दीका इतिहास स्वर्ण-अक्षरोंमें अंकित होगा। इस शताब्दीमें अनेकविध सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्य हुए हैं तथा सामाजिक चेतनाका विकास हुआ है । इन सब कार्यों में डॉ० दरबारीलाल कोठियाका अपना विशिष्ट स्थान है । यं तो आपसे मेरा परिचय काफी समयसे था, परन्तु मुझे आपके साथ निकटतासे कार्य करनेका अवसर उस समय मिला, जब आप बीसवीं शताब्दीके प्रथम सिद्धान्तचक्रवर्ती एलाचार्य श्री विद्यानन्द मुनि जीके पास डॉ० नेमीचन्द्र ज्योतिषाचार्य कृत 'भगवान् महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' के विमोचनके सम्बन्धमें विचार-विमर्श करने आए थे। उस समयसे अब तक मझे निरन्तर डॉ० कोठियाजीसे स्नेह, आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए मैं उनका हृदयसे आभार मानता हूँ। ___ धर्मपरायण, कर्मनिष्ठ, सज्जन-शिरोमणि, और परोपकारी डॉ० दरबारीलाल कोठिया वास्तवमें अभिनन्दनके सुपात्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy