SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोठी वाले कोठिया .श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन 'सरोज', जावरा मैं कोठियाजीको कोठीवाला लिखू, तो मेरा विनम्र विश्वास है कि उसे न कोठियाजी दुराशय समझेंगे और न उनके मित्र-शिष्य तथा अन्य विज्ञ बन्धु भी मुझे अन्यथा समझेंगे । कोठियाजीने गुणों और कार्योंकी जो कोठी बनाई है वह विश्वमें एक ही है; उसमें अनेक कमरे हैं और उनका यथास्थान उपयोग भी है। उनमेसे कतिय उल्लेखनीय कमरोंकी जानकारी पाठक आगे पढ़ेंगे । (१) शिक्षण-कक्ष-अवस्थाकी दृष्टिसे यह छोटा और पुराना है । पर भावी जीवन-भवनकी नींव ही बना है । सरस्वतीकी अराधना करने के लिए उन्होंने साद मल और बनारसमें शिक्षा या सारक्षरता ही प्राप्त नहीं की, बल्कि सरस्वतीके सफल पुत्र कहलानेका भी सौभाग्य प्राप्त किया। इस कक्षकी दीवारोंपर न्ययाचार्य, शास्त्राचार्य, अधिस्नातक अधिकारी स्नातक जैसे शब्द लिखे हैं । इनकी चमक आजके यगमें भले क्षीण हो गई हो पर लगन और निष्ठा, प्रेरणा और चेतनाकी प्रतिमूर्ति तो ये शब्द है ही है। (२) अध्यापनका कमरा-लगभग ४५ वर्ष पुराना है । इसकी दीवारोंपर अध्ययन, अनुभव, अभ्यास अनवरत जैसे शब्द लिखे हैं । यह कक्ष अपनेमें पपौरा, मथुरा, सरसावा, देहली, वाराणसीके अनुभवोंको आत्मसात् किए है। अनेक सुखद-दुखद मधुर-अमधुर स्मृतियाँ सँजोए है। इस कमरेके अधिपति विद्यार्थियोंको विद्या-दानके अतिरिक्त वात्सल्य रस भी उँडेलते रहे हैं। फलतः उनके कतिपय विद्यार्थी उन सदश ही विद्वान् बनकर धर्म और समाज तथा राष्ट्रको सेवाका कार्य कर रहे हैं। (३) समाज-सेवाका कक्ष-अपनी आदान-प्रदानकी कहानी कहता है-इस कक्षका स्वामी एकसे अधिक संस्थाओंसे सम्बद्ध होकर स्वयं एक सजीव संस्था बना है। कहीं अध्यक्ष, कही मन्त्री, कहीं उपअधिष्ठाता, कहीं उपाध्यक्ष; कहीं प्रधानसम्पादक, कहीं सहायक सम्पादक । अपनी सामाजिक सेवाओंके उपलक्ष्यमें कोठियाजीने न्यायालंकार, न्यायवाचस्पति, न्यायरत्नाकर जैसी मानद उपाधि प्राप्त की हैं। स्वर्णपदक और प्रशस्तिपत्र उनकी कीर्तिकथा कह रहे हैं। (४) साहित्य-सेवाका जो कमरा है-वह 'एकमेवमद्वितीयं ब्रह्म' जैसा है। मेरी दृष्टि में यह सर्वोपरि शीर्षस्थ है । यहां उन्होंने बारह राशियोंसे बारह ग्रन्थ लिखे हैं, उनके इन मानसपुत्रोंने वंश-वृक्ष बढ़ाकर उनको चिरजीवी ही नहीं बनाया, बल्कि सम्मानसूचक प्रशस्तिपत्र व सम्मानित धनराशि भी दिलवाई है। चॅकि कोठियाकी न्याय दर्शन] में अबाधगति है, इसलिए मुझे लगता है कि चश्मे में झाँकते उनके नयन-युगल संसार-न्याय-निष्ठाकी हा आशा-अपेक्षा रखते है। कोठियाजीकी कोठो चिरस्थायी हो । उनके गुण-कार्य प्रेरणास्पद रहें। एक निष्पह विद्वान् •पं० अमृतलाल जैन शास्त्री, दमोह कोठियाजीने जैनदर्शन और जैनधर्मकी जो महती प्रभावना अपने लेखों, ग्रन्थों और विश्वविद्यालयोंमें पढ़े गये शोधपत्रों तथा भाषणों द्वारा की है वह उल्लेखनीय है । __जब-जब उनसे मेरी भेंट हुई, तब-तब उनसे मुझे उत्साह मिला। वे जहाँ भी जाते हैं अपनी सौम्य प्रकृति, विद्वत्ता और निस्पृहताकी वहाँ छाप छोड़ आते हैं। चूंकि जिनबिम्बोंकी प्रतिष्ठा आदिके कार्योंमें मैं समाजमे आता जाता हूं और कोठियाजी भी वहाँ आमन्त्रित रहते हैं। मैंने निकटसे उनकी असाधारण निस्पृहताका दखा है । आर यहा कारण है कि समाजपर उनका जादू जसा प्रभाव पड़ता है। न्यायाचार्य डॉ० कोठियाका साहित्यिक क्षेत्रमे जैसा उच्चतम स्थान है वैसा ही सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रम भी है। इन दोनों क्षेत्रोंमे भी उनकी सेवाएँ एवं उपलब्धियाँ कम नहीं है । मैं डॉ० कोठियाजीके दीर्घजीवनकी मंगल-कामना करता हुआ उन्हें अपनी हादिक श्रद्धा प्रकट करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy