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________________ फलम मात्र के धनी नहीं वे वक्ता प्रखर प्रधान श्रोताजन के हृदय-पटल का हर लेते कितने छात्र और संस्थाएँ करतीं हैं गुण-गान जैन जगतका बच्चा, बच्चा करता है चमक दमक से मन सदा सादगी को लक्ष्य नाव लगाना पार पं० धरणेन्द्र कुमार शास्त्री, हटा वरद जिनवाणी के पुत्र शत नमन तुम्हें शत शत वन्दन कोठिया तुम्हारा अभिनन्दन जिन मंदिर के दरबारी तुम लाल तुम्हें करती हूँ वन्दन कोठिया तुम्हारा है, चरित्र चांदनी सा अभिनन्दन चमकाया घबराया अपनाया ध्वजा जैन तेरा करती अज्ञान ॥ १ ॥ शत कोठिया जलधि सम्मान ||२|| अभिवन्दन मनुजता का है युग युग जियो हमारे करूँ तुम्हारा शत नमन तुम्हें तुम्हें शत शत वन्दन कोठिया तुम्हारा है, अभिनन्दन सात्विक जीवन के हो प्यारे ऋषि मुनि के लाल दुलारे धारे सहनशीलता गुण को आत्मोन्नति के हारे Jain Education International समता ममता के अनुरंजन कोठिया तुम्हारा है, अभिनन्दन श्री शशिप्रभा जैन 'शशांशु' भारा पालन के पाया भाई वन्दन नमन तुम्हें शत शत तुम्हारा है अभिनन्दन से गंभीर रहे तुम अग्रदूत मैं अर्चन यही भावना जैन जगतको छूटे न पतवार तूफानों से सदा बचाकर लगाना - २७ - नाव ज्ञान वीर प्रभू से यही कामना बढ़े आपका वर्तमान से अधिक आपको मिले सदा सम्मान मृदुल पुष्प पराग हो गगन साहित्य स्वच्छ धन्य सत्य सरोज पराग हो तुम हुई भारत वसुन्धरा तेरा पद वन्दन करते शत शत नमन करूँ हे भाई कोठियां तुम्हारा अभिनन्दन कुसुम सी मुस्कान है सेरी कण है महकती आत्मा की कीर्ति कण सरलता के हार जैसी चिरायु 新 अर्चन नन्दन अभिनन्दन, शुद्ध सद्गुणों धर्ममूर्ति करती पार ॥३॥ हों तेरा For Private & Personal Use Only दरबारी जन जन के कोठिया तुम्हारा है स्वार्थ वृत्ति हृदय से परोपकार कर प्रत्युपकार बन महान पर स्वयं मान ललित कंठ में मधुर वाणी विभाव समभाव तज ज्ञान विद्या दान के समता ममता कोठिया तुम्हारा तुम के तज भज तज रस बनकर देकर अनुरंजन अभिनन्दन www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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