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________________ आदर्श व्यक्तित्व के धनी .पं० सत्यंधर कुमार सेठो, उज्जैन दिगम्बर जैन समाज भारतीय समाजोंमें एक आदर्श समाज है, जिसने हमेशा गुणोंकी पूजा की है, किसी व्यक्तिकी नहीं। आज भी इस समाजमें माँ सरस्वतीकी आराधना व सेवा करने वाले अगणित विद्वान हैं, जिनकी महान साधनापर हमें गर्व है । विद्वान् ही समाज के दर्पण हैं । जिनके प्रकाशसे सारा समाज प्रकाशित है। ऐसे विद्वानोंके प्रति समाजने हमेशा श्रद्धा और कृतज्ञता प्रदर्शित की है। पिछले वर्षों में परमपूज्य एलाचार्य मुनिराज विद्यानंदजी महाराज जैसे महान संतने विद्वानोंके प्रति जो सम्मानकी भावनायें प्रदर्शित की हैं वे वास्तवमें स्तुत्य और अनुकरणीय हैं । उन्हीं भावनाओसे प्रेरित होकर जैन समाज एक आदर्श व्यक्तित्त्वके धनी डॉ० दरबारीलालजी कोठियाके कर-कमलोंमें एक अभिनंदन-ग्रन्थ समर्पित करने जा रहा है। यह एक बहुत बड़ा सौभाग्य है। माननीय डा० दरबारीलालजी कोठियासे प्रत्यक्ष संपर्क मुझे सिर्फ २-३ बार हुआ है। वे एक आदर्श व्यक्तित्त्व के धनी हैं । उनका कद बहुत छोटा है । लेकिन उनका लक्ष्य बहुत ऊँचा है । हृदय उनका विशाल है और विचारोंके उदार हैं। उनका रहन-सहन सादा है। वास्तवमें वे कपड़े पहने हुए भी एक त्यागमूर्ति हैं। वे दर्शनशास्त्रके महान् विद्वान् हैं। माँ सरस्वतीके एक मात्र उपासक हैं और यही उनके जीवनकी एकमात्र साधना है । मैं तो यह मानता हूँ कि उन जैसे व्यक्तित्त्वके धनी विद्वान् जैन समाज में बहुत कम हैं । मैं स्वयं उनके व्यक्तित्त्व और विचारोंसे काफी प्रभावित हूँ। इसी लिये इस अभिनंदन जैसे पुनीत अवसरपर उनके चरणोंमें श्रद्धा-सुमन अर्पित करता एवं अपने आपको धन्य मानता हआ यही कामना करता है कि यह महान विद्वान चिरंजीवि रहकर माँ सरस्वतीकी सेनाके लिए अपने पग बढ़ाते हुए यशस्वी बने । शत-शत वंदन .प्राचार्य नेमिचन्द्र जैन, खुरई ___ आचार्य डॉ० दरबारीलालजी कोठिया जैनदर्शन एवं न्यायके एक उद्भट विद्वान् हैं। उनमें सादगी एवं सज्जनता कूट-कूट कर भरी हैं। वे यशलिप्सासे हमेशा दूर रहते हैं। मनसा, बाचा कर्मणा एक रहने वालोंमें अग्रगण्य है। जैन दर्शन एवं न्यायके ग्रन्थोंपर जो शोधपूर्ण कार्य किया है वह अनुपम एवं अतुलनीय है। जैन समाज उनके कार्योका ऋण नहीं चुका सकेगा। अभिनन्दनके अवसरपर आ० डॉ० दरबारीलालजी कोठियाके चरणों में मेरा शत-शत वन्दन है। समयशिल्पी आदर्श साधक • डॉ० श्रीमती पुष्पलता जैन, नागपुर खादीकी धवल धोती, कुर्ता और जाकिटके साथ गाँधी टोपी एवं चश्मा लगाए ठिगना पर कसरती गेहुंआ वदन, अहिंसक जूते पहने, सभीसे सुख-दुःखकी बात पूछता, ज्ञान की गरिमा और सरलताकी प्रतिकृतिमे ढंका हंसमुख व्यक्तित्व आपको कहीं दिखे तो समझ लीजिए, यही कोठियाजी हैं। एक साधारण परिवार में जन्मे इस प्रतिभासम्पन्न कर्मठ व्यक्तिने अपने स्वयंके पुरुषार्थसे वह सब अजित किया, जो सहज नहीं कहा जा सकता । जीवनके अनेक उतार-चढ़ाव उनके निकष बने, संघर्षोंने उन्हें ठोक बजाकर पक्का किया, गार्हस्थिक जीवनकी रिक्तताने उनमें सार्वभौमिक स्नेह सिक्तताको जन्म दिया। यह उनका वैशिष्ट्य है। उनके प्रथम दर्शन कदाचित् घरपर ही सागरमें हुए, जब वे मेरे पूज्य स्वर्गीय पिताजी श्री कंछेदीलालजी फुसके लेसे मिलने आये थे। उस समय मेरी उम्र मुश्किलसे १२-१३ वर्ष रही होगी । पिताजीने -२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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