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________________ श्री दरबारीलाल कोठिया अभिनंदन है बारंबार __पं० अनूपचन्द न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, जयपुर . तीर्थ क्षेत्र नैना गिरि जन्मे, नगर बनारस शिक्षा थान । स्यावाद विद्यालय काशी, साढूमल में पाया ज्ञान । पत्रकार! निर्भीक प्रवक्ता ! सफल समालोचक विख्यात । तुम अनेक संस्था, संस्थापक ! अध्येता शिक्षक प्रख्यात ॥ ८ सहयोगिनि मिल गई 'चमेली', दत्तक पुत्र बनें मुख्तार । साहित्यिक सेवा का व्रत ले किया स्वयं पर का उद्धार ॥ निःस्वारथ सेवी! गुण ग्राही! भावुक ! सदा अध्ययन शील ! परम शांत ! गंभीर उदधिसम दृढ़ श्रद्धानी! चिंतन शोल ॥ सरस्वती के वरद पुत्र तुम ! परम दार्शनिक सरल उदार । विद्वज्जन-प्रेमी प्रिय पंडित ! सहज सात्विक स्नेहागार ।। अध्यापन, लेखन, भाषण में अति निष्णात निपुण औ धीर । सत् साहित्य प्रणेता युग के जन-वाङमय-सेवक वीर ॥ आगम और सिद्धांत ग्रन्थ के अधिकारी विद्वान् ‘अनूप' नये तथ्य उद्घाटित करके दिया न्याय को नया स्वरूप ॥ ख्याति प्राप्त विद्वान शिरोमणि ! न्योछावर सब तुम पर आज । साहित्यिक मौलिक कृतियों से गौरवान्वित पूर्ण समाज ।। दर्शन और प्रमाण शास्त्र के विशद विवेचक टीकाकार । शुष्क विषय को सरस बनाकर स्वस्प किया अपना साकार ॥ सहृदयी ! हित मित प्रिय भाषी गुण गौरव गरिमा के धाम । आत्म प्रशंसा पर निंदा से नहीं तुम्हें कोई भी काम ।। ६ १२ न्यायाचार्य ! न्यायरत्नाकर, और न्यायवाचस्पति! विज्ञ । तुम न्यायालंकार मनीषी ! पदवी से भूषित मर्मज्ञ ॥ राष्ट्रीयनिधि ! मूल्यवान तुम तुम विद्वद्-परिषद् आधार ! श्री दरबारी लाल कोठिया अभिनंदन है बारंबार ।। -२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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