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________________ शत-शत अभिनन्दन है हास्यकवि-हजारीलाल जैन 'काका', सकरार (झांसी) जिनने अपने बल पौरुषसे महकाया जीवन-उपवन है, श्री दरबारीलाल कोठियाजीका शत-शत अभिनन्दन है। xx सरस्वती पानेमें जिनको लक्ष्मी बाधक बनकर आई, लेकिन न्यायमार्गसे जिनको किसी तरह भी डिगा न पाई, हँसते-हँसते संघर्षोंसे रहे जूझते हार न मानी, इसीलिये तो आज लक्ष्मी खुद ही भरती इनका पानी, पंडित होकर तृण समान इनकी नजरोंमें रहता धन है, श्री दरबारी लाल कोठियाजीका शत-शत अभिनन्दन है। x सच्ची लगन साधना श्रमने जल्दी ही रंगत दिखलाई, विद्वत्ताको लगी गूंजने देश-विदेशोंमें शहनाई, जन्मभूमि बुन्देलखण्डका जगमें गौरव मान बढ़ाया, जीवन अर्पित किया देश हित शिशुओंको दिन रात पढ़ाया, इसीलिये तो आज आपका ऋणी हो गया हर जन-जन है, श्री दरबारीलाल कोठियाजीका शत-शत अभिनन्दन है। x पूर्वपुण्यसे मिली गृहणी देवीरूप परम उपकारी, मां-समान ममता, भगिनी-सा शुचि स्नेह लुटावन हारी, आगतके स्वागतमें तत्पर अन्नपूर्णा रूप मनोहर, सरस्वती बन झंकृत करती रहती हैं जो वीणाके स्वर, ज्ञान ध्यान व्रत तप आराधनमें बीता जिनका जीवन है, माता श्री चमेली बाईका बन्दन है अभिनन्दन है। x X नैनागिरिके श्रमण-दूत ? वैद्य कपूरचंद्र विद्यार्थी, दमोह श्रम-साधन विद्या-आराधन तुम न्याय-दिवाकर रत्नाकर, कर बने मानवों में मनीष । पा हुई गौरवान्वित समाज । सम्यक्दर्शन सेवा-व्रत ले, हम चिर-आभारी नम्र-हृदय, पा लिया श्रमण संस्कृति आशीष ॥१॥ शत अभिनंदन का लिए साज ।।२।। युग जिओ “कोठिया" वाचस्पति, बुंदेलखंड के पुण्य-पूत !। श्रद्धा-सौरभ गौरव गरिमा, नैनागिरिजीके श्रमण-दूत ! ॥३॥ -२४ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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