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________________ आत्मीयताके दर्शन मुझे बहुत कम मिले हैं। मैं सोचता हूँ डॉ० कोठियाजीकी यह आत्मीयता न केवल मेरे लिए ही प्राप्त हुई, अपितु उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति एवं विद्वान्के लिये भी प्राप्त होती है । डॉ० कोठियाजीका अभिनन्दन उनकी विद्वत्ताका अभिनन्दन है। विद्वानों एवं समाजकी इस सूझबूझका मैं हृदयसे स्वागत करता हैं और डा० कोठियाजीके दीर्घायु की कामनाके साथ उन्हें अपनी विनीत प्रणामाजलि भर्पित करता हूँ। साहित्य-देवताके गरिमायुक्त आराधक •श्रीमती प्रेमलता पं० रविचन्द्र जैन, दमोह श्री दरबारीलालजी कोठिया बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् है । विद्वानों, साहित्यकारों एवं बुद्धिजीवियोंके लिए आप प्रकाश-स्तम्भ हैं। आपका समग्र जीवन उत्साह, लगन एवं धीरजका प्रेरणास्रोत है। धर्मके विषयमें आपके विचार उदात्त एवं सुलझे हए हैं। तथाकथित क्रियाकाण्डोंमें आप विश्वास नहीं करते। विवेक-संगत, विशुद्ध, चरित्र-निष्ठ, धार्मिक जीवन ही आपको अभीष्ट है। माननीय कोठियाजीकी लेखनीसे प्रसूत ग्रन्थ तथा निबन्ध आदि भारतीय दर्शन, जैन तत्त्वविद्या और जैन साहित्यके गहन अध्ययनसे ओत-प्रोत है। वे निष्पक्ष विचारक हैं। उन्होंने अनेक उच्चस्तरीय ग्रन्थोंका प्रणयन किया है, जिनमें दर्शन एवं साहित्यके विविध पक्षों/अंगोंका विशद मूल्यांकन-पूर्ण विवेचन है। उनकी गवेषणाका आधार सदा स्वस्थ रहा है। आप विद्वानोंकी विपरीत विचार-धाराओंकी संयत शैली में गम्भीर समीक्षा करते हैं। और उदारतापूर्वक सदैव ही सत्यका स्वागत/अर्चन करते हैं। ___आपके विचार अकाट्य एवं शास्त्रसम्मत हैं। वे सुलझे हैं, तर्क-वितर्क-पूर्ण होनेपर भी सहज हैं। अर्थोपार्जनके बन्धनोंमें उनकी उच्च आकांक्षाएँ बन्दी नहीं बन सकीं। आपकी पत्नी श्रीमती चमेली बाईजी विदुषी एवं धर्मपरायाणा महिला हैं। उन्होंने सदा आपको उत्साहपूर्ण सहयोग दिया है। पारिवारिक दृष्टिसे आपके चमनमें कई पुष्प खिले पर वे असमयमें ही मरझा गए। जिस असीम धैर्यके साथ आप सन्तानका वियोग सहते रहे, वह जैन दर्शन-प्रणीत कर्म-सिद्धान्तमें अटूट निष्ठाका ज्ञापक ही है। विपत्तियाँ आपको विचलित नहीं कर पाई। वे पहलेसे भी सहस्रगुनी अधिक तन्मयतासे साहित्यकी आराधना करते रहे । ____ आपने अनेकानेक संस्थाओंके माध्यमसे जैन संस्कृतिके प्रकाश एवं प्रसारमें महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। श्री वर्णी जैन ग्रन्थमालाके जीवनमें आपके जीवनके कई अध्याय समाविष्ट है। मेरी हार्दिक कामना है आप युग-युगों तक जीवित रहें। आपकी सभी भावनाएँ जैन संस्कृतिकी सेवा-सुरक्षा एवं उन्नतिके लिए सदा समर्पित रहें। मेरे ये पलाशके तुच्छ पत्तों जैसे शब्द-बन्धन आपका गुण-गौरव वर्णन करके सम्मानित होते हैं। मेरे श्रद्धेय • श्री शैलेश डी० कापडिया, सूरत (गुजरात) __डॉ० दरबारीलाल कोठिया बहुप्रसिद्ध विद्वान्, सुवक्ता, उदारमना, परोपकारवृत्तिपरक, धर्मोपदेष्टा, न्यायाचार्य, सुप्रसिद्ध लेखक और सफल अध्यापक हैं । कोठियाजी अभिनन्दनके योग्य तो बहत समयसे थे और स्थान-स्थान पर समाज द्वारा उनका अभिनन्दन किया भी गया है। पर अब जो उनका सार्वजनिक अभिनन्दन, अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पण द्वारा किया जा रहा है, यह आनन्दकी बात है। ऐसे पावन अवसर पर आदरणीय विद्वान् के प्रति मेरी और जैनमित्र-परिवारकी हार्दिक शुभकामनाएँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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