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________________ डा० कोठियाजी शतायु हों, स्वस्थ-नीरोग रहकर जिनवाणोकी सेवा करनेमें सतत सन्नद्ध रहें, ऐसी श्री जिनेन्द्रप्रभुसे प्रार्थना करते हुये, उनके प्रति अपनी विनम्र आदरांजलि निवेदित करता हूँ। आंतरिक श्रद्धा एवं विश्वास सहित । श्री कोठियाजीका नैतिक कोण .पं० दयाचन्द्र साहित्याचार्य, सागर श्री पं० दरबारीलालजी कोठियाका अस्तित्व एक नैतिक साधनाओंका अस्तित्व है, जिसमें व्यक्तित्व तथा कृतित्व झलकता है । कोठियाजी धार्मिक एवं नैतिक संस्कारोंके भण्डार हैं। यहाँ कोठियाजीके कोणमें प्रदीप्त उक्त भण्डारगत रत्नोंका मूल्याङ्कन कर रहे हैं । श्री कोठियाजीने स्वकीय जीवनसे कुल एवं समाजको समुन्नत करने के लिए ही नैनागिरि (ऋषीन्द्रगिरि) सिद्धक्षेत्रमें जन्म लिया। पुण्यतीर्थे कृतं येन तपः क्वाप्यति दुष्करम् । तस्य पुत्रो भवेद्वश्यः समृद्धो धार्मिकः सुधी॥ जिस माता-पिताने पूर्वजन्ममें या इस जन्ममें किसी पुण्यतीर्थपर या धार्मिक आयतनपर कोई महान् उपकार किया था। जिससे प्रभावसे उन माता-पिताको आज्ञाकारी, उन्ततिशील, धार्मिक और बुद्धिमान पुत्रका सुयोग प्राप्त होता है। इसके अनुसार कोठियाजीके माता-पिताको भी श्री कोठिया जैसा आज्ञाकारी नैतिक और बुद्धिमान पुत्र प्राप्त हुआ। वदनं प्रसादसदनं सदनं हृदयं सुधामुयो वाचः । करणं परोपकरणं येषां केषां न ते वन्द्याः ॥ श्री कोठियाजीकी आत्मा इन गुणोंका आयतन है । आपका मुखकमल प्रसन्नतासे रम्य रहता है, हृदय दयासे ओतप्रोत है, वचन अमृतके समान प्रिय हैं, परोपकार करना कर्तव्य है । वस्तुतः आप समाज द्वारा अभिनंदनके पात्र हैं। इस नीतिका विशेष आधार आपका आत्मकोण है । ज्ञान-धनसे धनिक होनेके कारण ही आपने अमूल्य कृतियोंको जन्म दिया है। __ श्री कोठियाजी अनेक रत्नगुणोंके भण्डार हैं। हम आपके चिरायुष्यके लिए हार्दिक मंगल-कामना करते हैं। स्मृतिके झरोखे में कोठियाजी .श्री विनय कुमार पथिक, मथुरा सन् १९३५ और ३६ के सन्धिकालकी बात है। उस समय भारतवर्षीय दि० जैन संघका नाम 'शास्त्रार्थ संघ' था। साह श्रेयांसप्रसादजी इसके अध्यक्ष थे। अम्बाला छावनीमें ला० शिव्वामलजी इसके संस्थापक थे। ७० वयसका तरुण था । शास्त्रार्थका निमंत्रण मिलते ही उमंगसे भर जाते थे। संघका यह यौवन काल था। उस समय संघमें पं० राजेन्द्रकुमारजी. श्री इन्द्रचंदजी शास्त्री, नवदीक्षित जैन स्वामी कर्मानंदजी, पं० लालबहादुरजी शास्त्री, पं० सुरेशचंदजी न्यायतीर्थ, डा० नारायणप्रसादजी, जिनकी ज्ञान-गंगा और हास्य-विनोद पुस्तकोंका ज्ञानपीठसे प्रकाशन हुआ है । पं० वलभद्जी, पं० पदमचन्दजी वेदतीर्थ, मा० रामानन्दजी, भैय्यालालजी, मा. दयाचंदजी आदि विद्वान थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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