SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन न्यायके अधिकारी विद्वान् • श्री सुबोध कुमार जैन, आरा ___ डा० दरबारीलाल कोठियाके सम्मानमें आप लोग अभिनंदन-ग्रन्थ प्रकाशित कर रहे हैं, यह जानकर प्रसन्नता हुई। ___ डॉ० कोठियासे हमारा घनिष्ट सम्बन्ध रहा है और इसमें कोई दो मत नहीं है कि उन्होंने जैन समाजको विभिन्न संस्थाओंके हितमें स्मरणीय सेवा की है। वे जैन न्यायके अधिकारी विद्वान हैं और जैन दर्शनपर उनकी कृतियाँ हमेशा विद्वानोंमें प्रशंसनीय बनी रहेंगी। अभी कुछ ही दिन पूर्व डॉ० कोठिया हमारे निमंत्रणपर आरा पधारे थे और उन्होंने श्री महावीरजयंती समारोहका सभापतित्व किया था । हमारी शुभ-कामना है कि वे सर्वदा स्वस्थ एवं सानन्द रहे और उनकी सेवायें समाजको बराबर मिलती रहें । तत्त्वज्ञानके भण्डारी •श्री मिश्रीलाल पाटनी, लश्कर (ग्वालियर) न्यायाचार्य डॉ० दरबारीलाल कोठियासे साक्षात्कारके अनेक सुअवसर प्राप्त हये । वे प्रत्येक विषयकी शंकाओंका सरल व मधुर ढंगसे समाधान करते हैं । वे तत्त्वज्ञानके भण्डारी गम्भीर प्रकृतिके विद्वान् है । उनका अधिकांश जोवन संस्थाओं और समाजको सेवामें व्यतीत हुआ है। आप प्रसन्नमना, निर्भीक, निःशंक, निर्लोभ वक्ता हैं। अभिनन्दनके इस स अवसर मैं भी अपनी शुभकामनायें व्यक्त करता हूँ। ज्ञानका अखण्ड दीप जलाया .श्री राजकुमार सेठी, डिमापुर यह जानकर प्रसन्नता हुई कि न्यायाचार्य डॉ० दरबारीलालजी कोठियाकी साहित्यक, सामाजिक सेवाओंके उपलक्ष्यमें कृतज्ञता ज्ञापन करने हुतु अ० भा० स्तरपर अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है । श्री कोठियाजी पिछले ४० वर्षोंसे जैन समाजकी अनेक संस्थाओंमें निस्वार्थभावसे सेवा-कार्य में रत हैं। उन्होंने अपने भाषण, लेखन और अध्यापन द्वारा जैन समाजमे ज्ञानका अखण्ड दीप जलाया है। वे शतायु हों, यही मेरी शुभ-कामना है । महामनीषी • सिंघई हुकुमचंद साधेलीय, पाटन डा० (पं०) कोठियाजीका जीवन अद्ध शताब्दी से अधिक दीर्घकाल व्यापी, जैन वाङ्मयके अनुसंधानकार्योंका मूर्तिमान दस्तावेज है। उन्होंने अपनी कृतियोंमें दर्शन और प्रमाणशास्त्रका तलस्पर्शी सूक्ष्म चिंतन और गवेषणापूर्ण सामग्री प्रस्तुत कर माँ भारती और जैन धर्मकी जो सेवा की है, उसके लिए उनका जितना भी अभिनन्दन किया जाय, कम ही है। उनकी गवेषणायें ऐतहासिक तो हैं ही, नितान्त मौलिक, तर्कयुक्त एवं शास्त्रसमस्त हैं । वे विद्वत्-जगतके महामनीषी है । हमें पूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराजके सांनिध्य में, अतिशय क्षेत्र कुण्डलगिरि (कोनीजी) में दिनांक २१ फरवरीसे २५ फरवरी १९८२ तक आयोजित श्री मज्जिनेन्द्र-पंचकल्याणक-प्रतिष्ठा महोत्सवमें आदरणीय डा० (पं०) कोठियाजीका सार्वजनिक सम्मान करनेका जो सौभाग्यशाली अवसर मिला है, उससे हम स्वयं गौरवान्वित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy