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________________ द्रव्यसंग्रह : एक अनुचिन्तन डा० भागचन्द्र ‘भास्कर', डी० लिट्०, नागपुर लोककल्याणकी पृष्ठभूमिमें गहन अध्ययन के लिए दुरूह ग्रन्थोंकी अवगाहनता, अभिव्यक्तिके लिए प्रखर पाण्डित्य और अनूठी प्रतिभा तथा प्रकाशनके लिए निःस्वार्थ त्यागवृत्ति और प्रगाढ़ समाजिकता ये तीन तत्त्व एक ही व्यक्तित्वके तीन प्ररूप हैं जिनका एकत्र संमिलन दुर्लभ-सा रहता है। न्यायचार्य डॉ० कोठिया जी एक विरल व्यक्तित्व हैं जो इन तीनों तत्त्वोंके धनी हैं। वे संपादनकलाके भी निष्णात पण्डित हैं। यह तथ्य उन मनीषीके द्वारा सम्पादित आप्तपरीक्षा, न्यायदीपिका, प्रमाणप्रमेयकलिका, प्रमाणपरीक्षा आदि दशाधिक ग्रन्थोंसे अच्छी तरह उद्घाटित हो जाता है । उनका 'जैन दर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन' अन्य इसे और प्रमाणित कर देता है। समीक्ष्य द्रव्यसंग्रह भी ऐसे ही सम्पादित ग्रंथोंकी शृंखलाका अलख मणि है, जो सन् १९६६ से शीर्षस्थ संस्करणके रूपमें विद्वज्जगतके समक्ष अपनी पूरी शानके साथ आज भी लोकप्रिय बना हुआ है। पण्डितजीकी शोधनिष्ठा और प्रकाशनव्यवस्थाका ज्वलन्त प्रतीक समीक्ष्य ग्रन्थका संपादकीय वक्तव्य है। वैसे द्रव्यसंग्रहके अनेक संस्करण निकल चुके हैं । पर प्रस्तुत संस्करणकी अन्यतम विशेषताएँ दृष्टव्य है-(१) पं० जयचन्द्रकृत देशवचनिकाका सर्वप्रथम प्रकाशन और (२) संस्कृतव्याख्या, विशद हिन्दी रूपान्तरके साथ । डॉ० कोठियाजीने इस ग्रन्थका संपादन बड़ौत, व्यावर तथा जयपुरकी प्रतियों के आधारपर किया है । इसके अतिरिक्त गाथानुक्रम, उद्धरणवाक्य और पाठान्तर ये तीन अन्य परिशिष्ट भी इसके साथ संबद्ध संपादनके अन्य प्रमुख भागोंमें प्रस्तावनाका एक अपना महत्त्व होता है । कोठियजीकी संपादनकलाका प्रमाण उनकी बहदाकार शोधपरक प्रस्तावना मानो जा सकती है। उनके प्रायः सभी संपादित ग्रन्थोंकी प्रस्तावनाएँ मूल ग्रन्थोंके आकार-प्रकारसे कम नहीं हैं । इस दृष्टिसे प्रस्तुत द्रव्यसंग्रहकी गहन सामग्रीको हम तीन भागोंमें विभाजित कर सकते हैं-(१) प्रस्तावना, (२) मूलग्रन्थ, और (३) परिशिष्ट भाग । तीनों भागोंमें क्रमशः ८५ + ८० + ८० पृष्ठ हैं । पृष्ठोंका यह विभाजन इस तथ्यका द्योतक है कि संपादक अपनी पूरी ईमानदारी और विद्वत्ताके साथ अपने उत्तरदायित्त्वका निर्वाह कर रहा है। १. प्रस्तावना भाग इस विस्तृत प्रस्तावनाको संपादकने दो भागोंमें विभाजित किया है-ग्रन्थ और ग्रन्थकार। ग्रन्थभागमें उन्होंने (क) द्रव्यसंग्रह, (ख) द्रव्यसंग्रहका परिचय, (ग) लघु और बृहद् द्रव्यसंग्रह, (घ) अध्यात्मशास्त्र, (ङ) ब्रह्मदेवकी संस्कृतटीका, (च) संस्कृतटीकामें उल्लिखित संस्कृत ग्रन्थ, (छ) महत्त्वपूर्ण शंकासमाधान, (ज) अन्य टीकाएँ, (झ) द्रव्यसंग्रहवचनिका, (ब) द्रव्यसंग्रहभाषा । ग्रन्थकार भागमें (क) ग्रन्थकर्ताका परिचय, (ख) नेमिचन्द्र नामके अनेक विद्वान्, (ग) द्रव्यसंग्रहके कर्ता नेमिचन्द्र, (घ) समय, (ङ) गुरु-शिष्य, (च) प्रभाव, (छ) स्थान, (ज) रचनाएँ, (झ) ब्रह्मदेव--व्यक्तित्व, कृतित्व और समय, (ब) वचनिकाकार पं० जयचन्द्रजी-परिचय, समय, साहित्यिक कार्य । यहीं लघु द्रव्यसंग्रह और बृहद् द्रव्यसंग्रहकी गाथाओंको भी एक जगह दे दिया गया है। - ११५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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