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________________ इस प्रकार अभिनव धर्मभूषणकी यह कृति उन सभी जैन न्याय-दर्शनके जिज्ञासुओंके लिए एक महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ है, जो उसमें प्रथमतः प्रवेश करना चाहते हैं। विद्वद्वरेण्य डाक्टर कोठियाने इसका वैज्ञानिक पद्धतिसे सुयोग्य सम्पादन करके तो उसे सर्वग्राह्य और सुपाठ्य बना दिया है । उन्होंने अनेक प्राचीन पाण्डुलिपियोंसे इसका संशोधन किया और अनेक महत्त्वपूर्ण पाठान्तरोंको लेकर उनसे समृद्ध किया है। विषय-सूची, प्रकाशनामक सुबोध टिप्पण, हिन्दी रूपान्तर और आठ परिशिष्टोंसे इसे समलड्कृत किया है। उनके इस संस्करणकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि १०१ (एकसौ एक) पृष्ठकी महत्त्वकी प्रस्तावना भी इसके साथ निबद्ध है, जिसमें न्यायदीपिकाके समग्र प्रमेयोंका समीक्षात्मक एवं तुलनात्मक चिन्तन और धर्मभूषणका बिलकुल नया अनुसंधानपूर्वक इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया है । जैन न्यायका जिज्ञासु कोई भी पाठक उनको अकेलो इसी प्रस्तावनाको पढ़ ले तो वह जहाँ जैन न्यायके प्रमुख तत्त्वोंसे परिचित होगा वहीं वह न्याय-वैशेषिक, सांख्य, मीमांसा और बौद्धन्यायसे भी बहुत कुछ अभिज्ञ हो जायगा। डॉक्टर कोठियाकी सम्पादनशैलीको एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि भाषा सरल और सुबोध है । न्यायदीपिकाके इससे पूर्वके संस्कारणोंमें न विषय-सूची है, न पैराग्राफ है न उत्थानिकावाक्य हैं और न ग्रन्थ एवं ग्रन्थकारका परिचय है । न्यायाचार्यजीने इन सबका समावेश अपने परिश्रम एवं योग्यतासे सम्पादित इस न्यायदीपिकाके समीक्ष्य संस्करणमें किया है । इत्यलम् । a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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