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________________ आ०व०५, सं० २००७, दिनांक १-१०-५० दरबारीलालजीकी योग्यता बढ़े, ऐसे कार्य करने की अनुमति देना । यदि मुख्तार साहबके पास पहुँच जायें, तब उनको भी लाभ और पं० जीको भी लाभ । चैत्र वदी २, सं० श्रीमान् पं० दरबारीलालजीका चित्त व्यग्र न हो, ऐसा मेरा सन्देश मुख्तयार साहबसे कहना । अभी पं० दरबारीलालजी आपके समक्ष बालक विद्वान हैं । वैशाख वदी १२, सं० २०११, १९५५ पं० दरबरीलालजी योग्य व्यक्ति है। मुख्तयार साहबने बहुत शीघ्रता की। पछताना पड़ेगा। उत्तम पुरुष जल्दी नहीं मिलता । दिगम्बर समाजमें तो गिनतीके योग्य व्यक्ति हैं । संयोगकी बात है कि तीन-चार माहके बाद ही जैन बाल आश्रम के अधिकारियोंने डॉक्टर कोठियाको बड़े आदर और सम्मानके साथ आमंत्रित किया और आश्रमके बालकोंको धर्मशास्त्र एवं न्यायतीर्थके शिक्षण के लिए प्रधानाचार्य के पदपर नियुक्त कर दिया। वहाँ पहुँचनेपर कोठियाजीने संस्कृत विद्यालयकी स्थापनाहेतु एक योजना बनायी, जिसे बाल आश्रमकी प्रबन्धकारिणीने तत्काल स्वीकार कर लिया। संस्कृत-विद्यालयको आचार्य समन्तभद्रके नामपर स्थापित करनेके डॉक्टर कोठियाके सुझावको भी कमेटीने स्वीकृत कर लिया। यह भी संयोगकी बात है कि कोठियाजीकी व मेरे पिताश्रीकी प्रेरणा एवं पूज्य वर्णीजीके आदेशसे दिल्ली के प्रतिष्ठित ला० मुंशीलालजी कपड़े वालोंने विद्यालयका विशाल भवन अपने द्रव्यसे बनवा दिया, जिसमें उस समय एक लाखके करीब लगा था। कोठियाजी विद्यालयमें आठ वर्ष रहे और तीन विद्वानोंको और नियुक्त कराने में सक्षम हुए । यह विद्यालय अभी भी अच्छी तरह चल रहा है । १९५७ के नवम्बरमें कोठियाजी दि० जैन कालेज, बड़ौत (मेरठ)में संस्कृतके प्राध्यापक हो गये । फिर वहाँसे अगस्त १९६० में काशी हिन्दू विश्वविद्यालयमें जैन दर्शनके प्राध्यापकके पदपर चले गये। वहाँ १९७० में रीडर हुए और १९७४ में रीडरपदसे सेवानिवृत्त होकर वाराणसीमें स्थायी रूपसे रहने लगे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि जुलाई १९६० में वीर-शासन-जयन्तीके अवसरपर स्व० पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारने वीर-सेवा-मन्दिरके वर्तमान भव्य भवनमें विशाल समारोहके बीच कोठियाजीको अपना धर्मपुत्र बनाया और अपना साहित्यिक उत्तराधिकार उन्हें दिया, जिसका वे निष्ठापूर्वक वहन कर रहे हैं। __ ऐसे गण्यमान्य विद्वान्का अभिनन्दन करने में समाज अपनेको गौरवान्वित अनुभव करता है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती चमेली बाई भी एक सहृदय, धार्मिक व वात्सल्यमयी विदुषी नारी है। पण्डितजीसे आशा है कि वे भी पूज्य मुख्तार साहबकी तरह अपना साहित्यिक उत्तराधिकारी बनायेगें। हम उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा व्यक्त करते हुए उनके शतायुष्यके लिए कोटिशः मंगल-कामनाएँ करते हैं । -८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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