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________________ हर्ष हुआ। डॉ० साहबने हमारे अनुरोधपर सपत्नीक पधारकर आये हुए रिश्तेदारों और गृहके परिवार जनोंपर अपने सरल व्यवहारकी पुनः छाप छोड़ी । सभी रिश्तेदारोंसे हमने आपका परिचय कराया और सबसे उनकी आत्मीयता हो गई। इस तरह डॉ० साहबके साथ हमारा उत्तरोत्तर सम्बन्ध मधुरसे सधुरतम होता गया । जब-जब उनसे भेंट हुई, तब-तब मुझे और मेरे परिवारको कुछ न कुछ धर्म एवं ज्ञानकी प्राप्ति होती ही गई । बहुत-सी शंकाएँ भी निर्मूल हुईं। जैनधर्म एवं देव, शास्त्र और गुरुके प्रति आस्था बढ़ती गई । पूज्य भट्टारक चारुकीर्ति स्वामी श्रवणबेलगोला, सन् १९७७ में हमारे यहाँ पधारे। इस अवसर पर भी डॉ० साहब गोरखपुर पधारे । बादमें हम सभी लोग चन्द्रपुरी और सिंहपुरीके दर्शन करते हुए मोटरसे बनारस पहुँचे । बनारस में भट्टारकजीको सभी मन्दिरोंके दर्शन कराने के लिए डॉ० साहब उनके साथ ४ दिन रहे । इस अवसरपर भी डॉ० साहबका सीधा-सादा व्यवहार हर्षदायक अनुभव किया । मैं सपरिवार सिद्धान्तचक्रवर्ती, एलाचार्य मुनि विद्यानन्दजीके चरणसान्निध्य में अक्सर आता जाता रहता हूँ । एलाचार्यजी कहते हैं कि डॉ० कोठिया जैसा विद्वान् और सरल व्यक्ति मिलना कठिन है । जब एलाचार्यजीका चातुर्मास इन्दौर में हो रहा था और जैन हाईस्कूल में आचार्य शान्तिसागरजीकी जयन्ती आयोजित थी । इसमें ५० हजारसे ऊपर लोग एकत्रित थे । पूज्य एलाचार्यजीने अपने प्रवचनमें जैनविद्या के प्रचार सन्दर्भ में चार न्यायाचार्योंकी चर्चा करते हुए कहा था- 'समाज और जैनधर्मका सौभाग्य है कि डॉ० दरबारीलाल कोठिया जीवित हैं और श्रुत और समाजकी सेवामें संलग्न हैं। उनके जैसा विद्वान् मिलना दुर्लभ है । उनकी श्रुत सेवा एवं समाजसेवाको भुलाया नहीं जा सकता ।' पूज्य एलाचार्यजीने यही बात जयपुरके प्रवास में अनेकों जगहों पर कही थी। जब मैंने डॉ० साहबके विषयमें उनसे पूछा तो उन्होंने पुनः डॉ० साहबकी उल्लेखनीय सेवाओंका जिक्र किया, तो मैंने अनुभव किया कि हमारा सौभाग्य है कि ऐसे विद्वानकी कृपा हम और हमारे परिवारपर है । डॉ० साहबको पावानगर में महावीर निर्वाण-उत्सवपर हम लोगोंने आमन्त्रित किया। डॉ० साहब, डॉ० शीतलचन्दजी के साथ आ गये । हमलोग पावानगर गये । वहाँ उनका भाषण हुआ । जैन-अजैन उनसे बहुत प्रभावित हुए । और रात्रिको रुकनेके लिए अनुरोध किया, किन्तु हम लोगों को लौटना जरूरी था । ऐसा है उनका व्यक्तित्व | दूसरे वर्ष भी डॉ० साहब पधारे और पावानगर गये । वहाँ कालेज में आपका वर्तमान शिक्षा के सन्दर्भ में एक भाषण हुआ, जिसकी प्रशंसा प्रधानाचार्य और अन्य अध्यापकोंने की। बहुतोंने तो मांस एवं मदिराका त्याग स्वतः कर दिया । १९८० में सम्पन्न श्रवणबेलगोलामें बाहुबली स्वामीके महामस्तकाभिषेकपर चलनेके लिए हमने आपसे अनुरोध किया । हमें प्रसन्नता है आप सपत्नीक हमारे साथ दो माह पूर्वसे ही श्रवणबेलगोला गये । पूज्य एलाचार्यजीके निर्देशपर आपने वहाँ इस अवसर पर पधारे समस्त साधुओं, क्षुल्लकों, ऐलकों, आर्यिकाओं और त्यागियोंके समक्ष दो माह तक प्रातः और सायं प्रवचन किये। प्रातः बृहद्रव्यसंग्रह और उसकी संस्कृतटीका तथा मध्याह्न में न्यायदीपिकापर आपके सरल और सुबोध प्रवचन हुए । लगभग १५० पिच्छियाँ थीं । अनेक महाराजोंको तो यह कहते हुए सुना कि पंडितजीके प्रवचनकी शैली सरल और सुबोध है । उन्हें दर्शन, न्याय और सिद्धान्तका गम्भीर ज्ञान है । डॉ० साहब के मधुर स्वभाव, हँसमुख चेहरे, मृदुल व्यवहार और विद्वत्तापूर्ण विवेचनने सभीको प्रभावित किया था । प्रश्नोंकी बौछार व तर्कको डॉ० साहब बड़े सरल शब्दों में समझाकर उत्तर देते थे । आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज ससंघ, आचार्य देशभूषणजी महाराज ससंघ, - ८२ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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