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________________ डॉ० कोठिया साहबसे मेरा कोई बीस वर्षोंसे निकटका सम्बन्ध है। मैंने उन्हें निरन्तर अध्ययन, अध्यापन, लेखन और सम्पादन कार्यमें व्यस्त पाया है । उनका घर विद्वानोंके लिए सदैव खुला मिलता है वहाँ पहुँचनेपर डॉ० कोठिया एवं उनकी सरल हृदया पत्नी अतिथियोंका स्वागत करने में तत्पर रहते हैं। जब वाराणसी जाना होता है उनके घर गये बिना बनारस छोड़नेकी इच्छा नहीं होती। यही कारण है कि उनके घरपर जब भी मैं गया हूँ किसी न किसी विद्वान् छात्रको उनसे परामर्श करते हुए पाया हूँ । जब मैं ने श्री महावीर ग्रन्थ अकादमीकी स्थापना करनेका अपना निश्चय सूचक पत्र लिखा तो एक सप्ताहमें ही उनकी शुभकामनाएँ मिल गयीं और पुनः जब मैंने संचालन समितिका सदस्य होनेका प्रस्ताव किया तो वे स्वयं तो सदस्य बन ही गये, एक सदस्य उनकी पत्नी श्रीमती चमेली देवी जी भी बन गयीं। इस प्रकारको सहयोग-भावना मुझे बहुत कम विद्वानों में देखनेको मिली है। वास्तवमें डॉ० कोठिया एवं उनकी श्रीमती दोनों ही उदारता पूर्वक साहित्यिक कार्योंमें अपना सहयोग देते रहते हैं। ___ डॉ० कोठिया साहब वर्तमान युगमें जैन दर्शन एवं सिद्धान्तके उन गिने-चुने विद्वानोंमेंसे हैं जिनपर समाजको गर्व है। उनकी विद्वत्ता, प्रवचनशैलो एवं लेखनशैली तोनोंसे हो समाज पूर्णरूपसे प्रभावित है और यही कारण है कि वे जहाँ भी जाते हैं समाज उनको सुननेको आतुर रहता है । डॉ० कोठिया साहबमें पायी जाने वाली विद्वत्ताके अतिरिक्त उनकी सौजन्यता, विनम्रता एवं सादगी और भी प्रभावित करने वाली है । यही कारण है कि वे पूरे समाजके विद्वान् है और पूरा समाज उनको अपना मानता है । वे न कभी पन्थभेद के झगड़ोंमें पड़ते हैं और न एक दूसरेकी उठापटकमें विश्वास रखते हैं। उनका समय तो अहर्निश जिनवाणीकी सेवा करने में व्यतीत होता है, इसलिए उनका समस्त जीवन ही अभिनन्दनीय है। साहित्य, समाज एवं दर्शनशास्त्र के लिये समर्पित विद्वान्का अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रकाशन निस्सन्देह प्रशंसनीय कार्य है। उनका तो जितना भी अभिनन्दन किया जावे, वही कम है। वे शतायु होकर इसी तरह जैनदर्शनकी सेवा करते रहें. यही मेरी हादिक कामना है। एक बहुरंगी व्यक्तित्व पं० बलभद्र जैन, आगरा बहुरंगी व्यक्तित्व-एक सिद्ध कलाकरने बड़े परिश्रम और मनो योगसे दीर्घकालमें एक भव्य चित्र निर्मित किया। चित्र सर्वाङ्ग सम्पूर्ण बना। उसकी भव्यता उसमें रंगोंके उपयुक्त समायोजनमें थी। उसके हर अङ्गमें नया रंग था, किन्तु उस चित्रका महत्त्व उसके विविध रंगों के कारण नहीं, रंगोंके उपयुक्त समायोजन और अपेक्षित चटकके कारण था । प्रकृतिने बहत्तर वर्षों में एक व्यक्तित्वका सृजन किया। उस व्यक्तित्वमें अनेक रंग भरे । चित्रके रंग बने थे काला, पीला, नीला, लाल, सफेद वर्गों और उनके मिश्रणसे । व्यक्तित्वमें रंग भरे गये-विद्वत्ता, प्रतिभा, सन्तोष, त्याग और सदाचारसे । व्यक्तित्व तो इकरंगे भी होते हैं, किन्तु उनमें भव्यता और आकर्षण कम ही होता है। खादीकी धोती, कुर्ता, टोपी और जाकिट। आँखोंपर चश्मा । माथेपर गहरे चिन्तनकी गहरी रेखायें। नाटा कद, दुबला पतला शरीर । चेहरेपर सौम्यता, बातोंमें शालीनता, व्यवहारमें सहजता, स्वभावमें -६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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