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________________ उन दिनों वहाँ श्री कोठियाजी मुख्तार साहबके सहयोगी रूपमें उनकी सेवामें थे। फिर उनके लेख अनेकान्त में पढ़नेको मिलते और उन्हें पढ़कर उनकी विद्वत्ताकी आप मेरे हृदयपर पड़ती रही। उसके बाद कुछ मतभेदके कारण सम्भवत: मुख्तार साहबसे अलग रहने व कार्य करने लगे। पर मुख्तार साहब और उनका सौहार्द बराबर बना रहा । उनका अध्ययन और लेखन भी नियमित चलता रहा। काशी हिन्दू विश्वविद्यालयमें जैन दर्शनके पूर्वपंडित पं० सुखलालजी व पं० दलसुख भाई मालवणिया के अवकाश ग्रहण करनेपर उक्त पदपर आपकी नियुक्ति हो गयी ओर कई वर्षों तक वहाँ जैन दर्शन और इतर दर्शनों के अध्यापन का काम सफलतापूर्वक करते रहे । वहाँ अनेक बड़े-बड़े विद्वानोंके सम्पर्क में आने और स्वयं अध्ययनरत रहने और अध्यापनके प्रसंगमें अनेक ग्रन्थोंका चिन्तन करनेसे आपकी प्रतिभामें काफी निखार आया। और एक ठोस विद्वान्के रूप में उनकी गणना की जाने लगी। बनारस में रहते हुए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ व लेख लिखे । पर साथ ही एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया-वर्णी ग्रन्थमालाके प्रकाशनोंका। इस ग्रन्थमालाको आपने नव जीवन प्रदान किया। और थोड़े ही वर्षों में बहुत उच्चकोटिका सुन्दर साहित्य प्रकाशन कर सके । इस कार्यके लिए अर्थ जुटानेमें आपने पूरा भाग लिया। आज उनके सहयोगके अभावमें संस्थाकी प्रगति अवरुद्ध-सी है। कोठियाजी स्वभावतः समन्वयशील विद्वान् और मिलनसार व्यक्तित्त्व वाले हैं । इससे सबके साथ अच्छा मधुर सम्बन्ध है । आपकी उदारता भी सराहनीय हैं। समय-समय पर मैंने देखा है कि विद्वानोंको अपने यहाँ बुलाकर भोजनादि करवाते हैं। मैं भी ऐसो एक गोष्ठी में उनके यहाँ भोजन कर चुका हूँ । खुले हृदयसे अपनी विद्वत्ताका लाभ भी दूसरोंको पहुँचाते है । विद्या उनकी व्यसन-सी बन गयी है। और ज्ञानके प्रसारमें उनमें संकुचितता नहीं है। वास्तव में विद्याका दान शास्त्रोक्त ज्ञानदान जैसा बहुत बड़ा दान है। जिससे एक से अनेक विद्वान् तैयार होते हैं और ज्ञान-समृद्धिकी यह परम्परा आगे बढ़ती रहती है। उनकी नई खोजें व स्थापनायें काफी महत्त्वपूर्ण हैं। उनमें मतभेद हो सकता है । पर कोठियाजी जो कुछ भी लिखते हैं वह तर्क और प्रमाण पुष्ट होता है। जिन विद्वानों-ग्रन्थकारोंमें अनेकका काल-निर्णय आज भी समस्या बना हुआ है फिर भी पं० सुखलालजी, पं० महेन्द्रकुमारजी, पं० नाथूरामजी 'प्रेमी', पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार पं० दलसुख मालवणीया आदि अनेकों विद्वानोंके साथ-साथ आपका नाम भी जोड़ा जा सकता है, जिन्होंने अनेकों समस्याओंका अच्छा समाधान किया है । मैं डॉ० कोठियाजीकी दीर्घकालीन आय और स्वस्थ रहनेकी कामना करता हआ वे जैन शासनकी और भी अधिक सेवा करते रहें, यही शुभकामना करता हूँ। अभिनन्दनीयका अभिनन्दन-जय वीतराग । जैन दर्शनके मूर्द्धन्य विद्वान् डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर डॉ० दरबारीलालजी कोठिया वर्तमान शताब्दी में जैन दर्शनके मुद्धन्य विद्वान हैं । विगत ४० वर्षों, में उन्होंने जैन दर्शनका गम्भीर अध्ययन करके दार्शनिक जगत्के समक्ष जो नये आयाम प्रस्तुत किये हैं वे निस्सन्देह प्रशंसनीय ही नहीं, किन्तु नयी-नयी उपलब्धियोंसे ओतप्रोत है । दार्शनिक होते हुए भी वे सरल एवं उदार व्यक्तित्वके धनी है । अपने विद्यार्थियों के प्रति तन, मन एवं धन तीनोंसे समर्पित रहते हैं । यही नहीं साहित्यिक जगतमें कार्य करने वाले प्रत्येक विद्वान एवं विद्यार्थीको प्रोत्साहित करने वाले हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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