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________________ १४४२ ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : चाण्डालपुत्र यद्यपि वर्तमानपर्याय में देव नहीं है तथापि सम्यग्दर्शनसहित होने के कारण अगली पर्याय में देव होगा, क्योंकि सम्यग्दर्शन देवायु के बन्ध का कारण है, ऐसा 'सम्यक्त्वं च' सूत्र द्वारा कहा गया है। अतः द्रव्यनिक्षेप से सम्यग्दृष्टिचाण्डालपुत्र को देव कहने में कोई आपत्ति नहीं है । कहा भी है 'अणागय पज्जाय विसेसं पडुच्च गहियाहिमुहियं दध्वं अतब्भावं वा ।' । आगे होनेवाली पर्याय को ग्रहण करने के सन्मुख हुए द्रव्य को, उस आगामीपर्याय की अपेक्षा द्रव्य निक्षेप कहते हैं अथवा वर्तमानपर्याय की विवक्षा से रहित द्रव्य को ही द्रव्यनिक्षेप कहते हैं । सम्यक्त्वसहित चाण्डालपुत्र नैगमनय से देव है । जैसे किसी मनुष्य को पापीलोगों का समागम करते हुए देखकर, नैगमनय से कहा जाता है कि यह पुरुष नारकी है; वैसे ही सम्यग्दृष्टिचाण्डालपुत्र को सत्समागम करते हुए देखकर नैगमनय से कहा जाता है कि यह पुरुष देव है। कहा भी है के पि णरं दठ्ठण य पावजणसमागमं करेमाणं । गमणएण भण्णइ रइओ एस पूरिसो त्ति ॥ श्री समंतभद्राचार्य ने द्रव्य निक्षेप तथा नैगमनय की अपेक्षा सम्यग्दृष्टिचाण्डालपुत्र को देव कहा है । अथवा शक्ति की अपेक्षा देव कहा है। कहा भी है 'बहिरात्मावस्थायामन्तरात्मपरमात्मद्वयं शक्तिरूपेण भाविनगमनयेन व्यक्तिरूपेण च विज्ञेयम् । अन्तरात्मावस्थायां तु बहिरात्मा भूतपूर्वनयेन घृतघटवत्, परमात्मस्वरूपं तु शक्तिरूपेण भाविनगमनयेन व्यक्तिरूपेण च । परमात्मावस्थायां पुनरन्तरात्मबहिरात्मद्वयं भूतपूर्वनयेनेति ।' ( द्रव्यसंग्रह पृ. ४७ ) बहिरात्मा ( मिथ्यादृष्टि ) की दशा में अन्तरात्मा तथा परमात्मा ये दोनों शक्तिरूप से रहते हैं और भावीनंगमनय से व्यक्तिरूप से भी रहते हैं ऐसा समझना चाहिए । अन्तरात्मा की अवस्था में बहिरात्मा घृत-घट के समान भूतपूर्वनय से रहता है और परमात्मा का स्वरूप शक्तिरूप से रहता है तथा भावीनैगमनय की अपेक्षा रूप से भी जानना चाहिये । परमात्मअवस्था में अन्तरात्मा तथा बहिरात्मा भूतपूर्वनय की अपेक्षा जानने चाहिये । सम्यग्दृष्टिचाण्डालपुत्र अन्तरात्मा है, अतः उसमें परमात्मापन अर्थात् देवत्वशक्तिरूप से है। भावनिक्षेप तथा एवं भूतनय की अपेक्षा सम्यग्दृष्टिचांडालपुत्र में देवत्व नहीं है। कहा भी है'वर्तमानपर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भावः ।' [ध. पु. १ पृ. २९] वर्तमानपर्याय से युक्त द्रव्य को भावनिक्षेप कहते हैं। सम्यग्दृष्टिचांडालपुत्र के वर्तमान में मनुष्यपर्याय है, देवपर्याय नहीं है, अतः वह देव नहीं है । जैसे मनष्य जब नरकगति में पहुंचकर नरक के दुःख अनुभव करने लगता है तभी वह नारकी है ऐसा एवंभूतनय कहता है, वैसे ही सम्यग्दृष्टि चांडालपुत्र जब देवगति में पहुंचकर देव के मुख का अनुभव करने लगता है तभी वह देव है ऐसा एवंभूतनय कहता है । कहा भी है णिरयगई संपत्तो जइया अणुहवइ णारयं दुक्खं । तइया सो रइओ एवंभूदो णओ भणदि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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