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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १४४१ 'जिनशासन में कहा है कि वस्त्रधारी पुरुष सिद्धि को प्राप्त नहीं होता, भले ही वह तीर्थकर भी क्यों न हो ? नग्न वेष ही मोक्षमार्ग है, शेष सब उन्मार्ग ( मिथ्यामार्ग ) हैं।' पंचमहन्वयजुत्तो तिहिंगुत्तिहिं जो स संजदो होई। णिग्गंथमोक्खमग्गो सो होदि हु वंदणिज्जो य ॥२०॥ 'जो पांचमहाव्रत और तीनगुप्तियों से सहित है वही संयत अर्थात् संयमी-मुनि होता है। निर्ग्रन्थ ही मोक्षमार्ग है । निम्रन्थ साधु ही वन्दना अर्थात् नमस्कार के योग्य है।' इससे स्पष्ट हो जाता है कि जो निम्रन्थसाधु नहीं हैं वे वन्दने योग्य नहीं हैं । चाण्डाल पुत्र निर्ग्रन्थसाधु नहीं हो सकता, इसलिये वह वन्दने योग्य नहीं है। एक्कं जिणस्स एवं वीयं बिदियं उक्किसावयाणं तु।। अवरट्ठियाण तइयं चउत्थ पुण लिंगदंसणं पत्थि ॥१८॥ (दर्शनपाहुड़) 'एक जिनमुद्रा अर्थात् नग्नरूप, दूसरा उत्कृष्ट श्रावकों का अर्थात् क्षुल्लक या ऐलक और तीसरा आर्यिकानों का, इसप्रकार जिनशासन में तीन लिङ्ग कहे गये हैं। चौथा लिंग जिनशासन में नहीं है।' चाण्डालपुत्र के ये तीनों लिंग नहीं हैं अतः वह इच्छाकार के योग्य भी नहीं है। 'न तासां भावसंयमोऽस्तिभावासंयमाविनाभाविवस्त्रायुपादानान्यथानुपपत्तेः।' 'उनके ( वस्त्रधारियों के) भावसंयम नहीं है, क्योंकि भावसंयम के मानने पर उनके भाव-असंयम का अविनाभावी वस्त्रादिक का ग्रहण करना नहीं बन सकता है।' द्रव्यलिगं समास्थाय भावलिगो भवेद्यतिः । विना तेन न वन्द्यः स्यान्नानावतधरोऽपि सन् । द्रयलिंगमिदं ज्ञेयं भावलिंगस्य कारणं । ( अष्टपाहुड पृ० २०७) 'मुनि द्रव्यलिंग धारणकर भावलिंगी होता है। नानाव्रतों का धारक होने पर भी द्रव्यलिंग के बिना वन्दनीय नहीं है, नमस्कार के योग्य नहीं है। इस द्रव्यलिंग को भावलिंग का कारण जानना चाहिए।' चाण्डाल पुत्र द्रयलिंग को धारण नहीं कर सकता, अतः वह वन्दनीय नहीं है। 'देव' शब्द का दूसरा अर्थ इसप्रकार है'अणिमाद्यष्टगुणावष्टम्भबलेन दीव्यन्ति क्रीड़न्तीति देवाः।' (ध. पु. १ पृ. २०३) जो अणिमादि पाठऋद्धियों की प्राप्ति के बल से क्रीड़ा करते हैं उन्हें देव कहते हैं। चाण्डालपुत्र के अणिमादि पाठऋद्धियों की प्राप्ति नहीं है अत: चाण्डालपुत्र देव नहीं है। चाण्डालपुत्र के देवगति नाम कर्म का उदय नहीं है, इसलिए भी वह देव नहीं है। प्रश्न यह होता है कि सम्यग्दर्शनयुक्त चाण्डालपुत्र को श्री समंतभद्राचार्य ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में देव क्यों कहा है ? जैनागम में नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव ये चार निक्षेपों तथा नैगम आदि सातनयों के द्वारा कथन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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