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________________ १३९० ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : सहवर्ती पर्याय अर्थात् गुण शंका-गुण को सहवर्ती पर्याय कहा है सो कैसे ? ___ समाधान-पर्याय का अर्थ गुण भी है, धर्म भी है । (संस्कृत-हिन्दी कोश पृ. ५९५) । यहाँ पर पर्याय का अर्थ 'धर्म' लेना । सहवर्ती पर्याय ( धर्म ) को गुण कहते हैं । इसमें कोई बाधा नहीं आती। --णे. ग. 26-10-67/VII/ र. ला. जैन सूच्यंगुल अर्थात् पौरण इन्च शंका-'सूच्यंगुल' का इन्च या सेन्टीमीटर में क्या प्रमाण है ? समाधान-२४ सूच्यंगुल का एक हाथ अर्थात् प्राधा गज या १८ इंच होते हैं । इहिं अगुले हिवादो बेवादेहि, विहस्थिणामाय । दोणि विहत्थी हत्थो, देहत्थेहि हवे रिक्कू ॥११४॥ (ति. प. प्र. अ.) छह अंगुलों का पाद, दो पादों का वितस्ति ( बालिस्त ) दो वितस्ति का हाथ इस माप के द्वारा एक सूच्यंगुल पौन-इन्च के बराबर होती है। पौन-इन्च १५ सेंटीमीटर के बराबर होता है। इसप्रकार सूच्यंगुल का प्रचलित माप में ज्ञान हो जाता है। -जे. 22-4-76/ ज ला. जैन, भीण्डर स्यादाकूतम् का अर्थ शंका-स्यादाकूतम् का क्या अर्थ है ? समाधान–'स्यात्' का अर्थ 'प्राकृतम्' किया है । 'स्यात्' का अर्थ कथंचित् अर्थात् वक्ता के अभिप्राय की अपेक्षा 'आकृतम्' का अर्थ भी वक्ता का अभिप्राय है। वक्ता के अभिप्राय को नय भी कहते हैं अथवा अपेक्षा भी कहते हैं। इसप्रकार स्यात् शब्द का जो प्रयोजन है वही आकृतम शब्द का प्रयोजन है। -पतावार |ज ला गैन, भीण्डर विविध नमस्कार स्वरूप महामंत्र अनाद्यनन्त है परन्तु प्रकृत णमोकारमंत्र के कर्ता पुष्पदन्ताचार्य हैं शंका-ध. पु. सं. ३ की प्रस्तावना से प्रतीत होता है कि णमोकारमंत्र का वर्तमानरूप अनादि नहीं है। क्या यह ठीक है ? क्या इस मंत्र के रचयिता श्री पुष्पदन्त आचार्य थे? समाधान-पंच नमस्कार मंत्र अनादि है । कहा भी है एसो पंचणमोकारो सब्वपावप्पणासणो। मंगलेसु च सव्वेसु पढम होदि मंगलं ॥७॥१३॥ [मूलाराधना] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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