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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] ववहारेणुवदिस्सर णाणिस्स चरित्तदंसणं गाणं । वि गाणं ण चरितं ण दंसणं जाणगो सुद्धो ॥ ७ ॥ अर्थ - जीव के चारित्र, दर्शन, ज्ञान व्यवहार से कहे हैं । ज्ञान भी नहीं है, चारित्र नहीं, दर्शन नहीं । ज्ञायक है इसलिये शुद्ध है । जानना तथा पीत - पद्मपना ये ज्ञानगुण और वर्णगुण की पर्याय हैं । ये भी इसप्रकार 'जीव में ज्ञान और जानना तथा पुद्गल में वर्ण और पीत- पद्मपना यह सब निश्चयनय का विषय नहीं है । [ १३०९ जिनबिम्ब के दर्शन, पूजन श्रादि करते समय भक्त के उपयोग में वह जिनबिम्ब पुद्गल है या जिनेन्द्र भगवान है । उस जिनबिम्ब में भक्त को वीतरागता का दर्शन हो रहा है या श्वेतादिवर्ण का दर्शन हो रहा है ? व्यवहारनय का विषय है । व्यवहारनय का विषय है, यदि निबिम्ब में वीतरागता का दर्शन न होता तो जिनबिम्बदर्शन सम्यग्दर्शनोत्पत्ति का कारण नहीं हो सकता था, किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि श्री पूज्यपाद तथा श्री वीरसेनाचार्य ने जिनबिम्बदर्शन को सम्यग्दर्शनोत्पत्ति का कारण बतलाया है । स. सि. में अ. १ सूत्र ७ की टीका में सम्यग्दर्शन के साधन का कथन करते हुए 'तिरश्चां केषाञ्चित् जातिस्मरणं, केषाञ्चिद्धर्मश्रवणं, केषाञ्चिज्जिनबिम्बदर्शनम् ।' इन वाक्यों द्वारा यह कहा है कि तियंचों में किन्हीं के जातिस्मरण, किन्हीं के धर्मश्रवण और किन्हीं के जिनबिम्बदर्शन से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है । श्री गौतम गणधर ने भी द्वादशांग में निम्न सूत्र कथन किया है " तिरिक्खा मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्तं उप्पादेति ? ॥ २१ ॥ तीहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुप्पादेति केइ जाइस्सरा, केइ सोऊण, केइ जिर्णाबदट्ठूण ॥ २३ ॥ [ ष. ख. पु. ६ पृ. ४२७ ] अर्थ - तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीव कितने कारणों से प्रथमसम्यक्त्व को उत्पन्न करते हैं ? तिर्यंच तीनकारणों से प्रथमसम्यक्त्व को उत्पन्न करते हैं, कितने ही जातिस्मरण से, कितने ही धर्मोपदेश सुनकर और कितने ही जिनबिम्ब के दर्शन करके । Jain Education International इस द्वादशांग के सूत्र पर श्री वीरसेनाचार्य ने निम्नप्रकार टीका रची है "कथं बिबसणं पढमसम्मत्तप्पत्तीए कारणं ? जिर्णाबबदंसणेण विधत्तणिकाचिदस्स वि मिच्छत्तादिकम्मकलावस्त खयदंसणादो ।" अर्थ - जिनबिम्बदर्शन प्रथमसम्यक्त्व की उत्पत्ति का कारण किसप्रकार होता है ? जिनबिम्बदर्शन से नित्ति और निकाचितरूप भी मिथ्यात्वादि कर्मकलापका क्षय देखा जाता है, जिससे जिनबिम्बका दर्शन प्रथमसम्यक्त्व की उत्पत्ति का कारण होता है । 'वीतरागता' जीव का गुण है और वीतरागता का दर्शन प्रचेतन जिनबिम्ब में होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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