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________________ १००८ ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : तथापि वे एक द्रव्यात्मक सूक्ष्म पर्यायरूप परमाणु से लेकर अनेक द्रध्यात्मक स्थूल पर्यायरूप पृथ्वी स्कन्धतक के समस्त पुद्गलों के साधारणरूप से पाये जाते हैं, किन्तु अन्य द्रव्यों में नहीं रहने से ये स्पर्श आदि विशेष गुण हैं । इसी टीका में श्री अमृतचन्द्राचार्य लिखते हैं कि शब्द यद्यपि इंद्रियग्राह्य है तथापि वह गुण नहीं है, किन्तु शब्द तो पद्गल की स्कंधपर्याय है। पर्याय का लक्षण कादाचित्कत्व है अर्थात अनित्यत्व है और गुण का लक्षण नित्यत्व है । शब्द नित्य नहीं है इसलिये शब्दगुण नहीं है, किन्तु पुद्गल की पर्याय है । यदि शब्द पुद्गल को पर्याय है तो वह समस्त इंद्रियों के द्वारा ग्राह्य होना चाहिये जैसे पृथिवी पुद्गल की पर्याय है और समस्त इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य है, ऐसी शंका ठीक नहीं है, क्योंकि जैसे जल घ्राणइंद्रिय का विषय नहीं है अग्नि घ्राण और रसना इन्द्रियों का विषय नहीं है, और वायु घ्राण, रसना तथा चक्षुइंद्रिय का विषय नहीं है वैसे ही शब्द भी कर्ण के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियों का विषय नहीं है, किन्तु जल, अग्नि, वायु और शब्द में स्पर्श प्रादि चारों ही गुण विद्यमान हैं । इस टीका से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि परमाणु में कर्णइंद्रियसम्बन्धी ग्राह्यता है। पुद्गल की शब्द. रूप स्कंध पर्याय में कर्णइन्द्रियसम्बन्धी ग्राह्यता है। परमाणु में शब्दरूप स्कंधपर्याय का अभाव है इसलिये उसमें कर्ण इन्द्रियसम्बन्धी ग्राह्यता नहीं है, किन्तु उसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्णगुण विद्यमान हैं, इसलिये परमाणु के स्पर्श मादि गुणों में स्पर्शनादि इंद्रियों द्वारा ग्राह्यता है । यह बात सत्य है कि पुद्गल में शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति है, अन्य पाँचद्रव्यों में प्रर्थात् जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, कालद्रव्यों में शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति नहीं है, इसीलिये 'शब्द' पद्गल की पर्याय है। किन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं है कि प्रत्येक पुद्गलद्रव्य में शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति है। यदि ऐसा मान लिया जाय तो अव्यवस्था हो जायगी। उपादान का नियम न ठहरे। यद्यपि मृत्तिका और तन्तु दोनों पदगल है. किन्त मतिका में घटरूप परिणमन शक्ति है, तन्तु में घटरूप परिणमन शक्ति नहीं है इसीप्रकार भाषा-वर्गणाओं में शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति है अन्य पुद्गल २२ वर्गणाओं में शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति नहीं है, अन्यथा कार्माणवर्गणा भी शब्दरूप परिणम जायेगी, मृत्तिका से पट ( कपड़ा) बन जायगा और तन्तु से घट बन जायगा। पुद्गल परमाणु में शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति नहीं है । बन्ध होने पर जब पुद्गल परमाणुओं का समह भाषावर्गणारूप परिणम जाता है तब उनमें शब्दरूप परिणमन करने की पर्याय-शक्ति उत्पन्न हो जाती है। __ -तं. ग. 7.2-66/X/र. ला. जैन परमाणु में स्पर्शादि चारों गुण व्यक्त हैं स्कन्ध में कोई गुण व्यक्त तथा कोई अव्यक्त होते हैं शंका-"किन्हीं परमाणुओं में कोई गुण व्यक्त होता है और किन्ही में कोई गुण अव्यक्त रहता है" ऐसा 'जैन संवेश' में लिखा है । परमाणु में रूप, रस, गंध, स्पर्श इनमें से कोई गुण व्यक्त और कोई गुण अव्यक्त रहते हैं क्या? कैसे? समाधान-परमाणु में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण में चारों गुण व्यक्त रहते हैं। इनमें से कोई भी अव्यक्त नहीं रहता है। परमाणु जब पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुरूप स्कन्ध में परिणमन कर जाता है तब उसमें कोई गुण मुख्य (व्यक्त ) हो जाता है और कोई गुण गौण ( अव्यक्त ) हो जाता है । स्पर्शगुण के पाठ भेद हैं स्निग्ध-रूक्ष, शीत-उष्ण, हल्का-भारी, कोमल-कठोर । स्पर्शगुण के इन चार युगलों में परमाणुओं में स्निग्ध-रूक्ष शीतोष्ण, ये दो युगल पाये जाते हैं और हल्का-भारी तथा कोमल कठोर इन दो युगलों का अभाव है । बंध होने पर स्कन्ध अवस्था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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