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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [१००६ में हलका-भारी कोमल-कठोर ये गुण उत्पन्न होंगे। द्रव्याथिकनय की अपेक्षा से सत् का नाश और असत् का उत्पाद नहीं होता, किन्तु पर्यायाथिकनय की अपेक्षा से सत् का विनाश और असत् का उत्पाद होता रहता है। श्री कुन्दकुन्द भगवान ने कहा भी है एवं सदो विणासो असदो, जीवस्स होई उप्पादो। इदि जिणवरेहि भणिवं, अण्णोष्णविरुद्धमविरुद्ध ॥ ५४ ॥ भावों के द्वारा जीव के सत् का विनाश और असत् का उत्पाद होता है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। पूर्व में जो यह कहा गया है कि सत् का विनाश नहीं होता और असत् का उत्पाद नहीं है, यद्यपि यह कथन उसके विरुद्ध है तथापि नय विवक्षा से विरुद्ध नहीं भी है अर्थात् द्रव्याथिकनय से सत द्रव्य का विनाश और असत् द्रव्य का उत्पाद नहीं होता, किन्तु पर्यायाथिकनय से सत् पर्याय का नाश और असत पर्याय का उत्पाद होता है। दोनों नय परस्पर सापेक्ष हैं। जिनके मात्र द्रव्याथिकनय का एकान्त है अर्थात् ऐसे एकान्त मिथ्याष्टियों के मत में असत् का उत्पाद और सत् का विनाश नहीं होता। किन्तु स्याद्वादियों को दोनों इष्ट हैं, उनको किसी का एकान्त आग्रह नहीं है। द्रव्याथिकनय की अपेक्षा पुद्गलपरमाणु का उत्पाद भी नहीं है और विनाश भी नहीं है, किन्तु पर्यायाथिक नय से बंध हो जानेपर स्कंध अवस्था में परमाणु अवस्था ( पर्याय ) का नाश हो जाता है और स्कन्ध से पृथक् होने पर अर्थात् भेद होने पर परमाणु का उत्पाद होता है । तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ५ में कहा भी है "भेदादणुः" परमाणु अचाक्षुष है, किन्तु स्थूल स्कन्धपर्याय होने पर चाक्षुष हो जाता है। परमाणु में हलका-भारी कोमल-कठोर स्पर्शगुणों का अभाव है, किन्तु स्कन्धपर्याय में ये गुण उत्पन्न हो जाते हैं । परमाणु में ये गुण अव्यक्त भी नहीं हैं। यदि परमाणु में कोमल-कठोर हलका-भारी अव्यक्त होते तो केवलज्ञानी को तो ये व्यक्तरूप से दिखाई देते, किन्तु सर्वज्ञ ने परमाणू में कोमल-कठोर हलका-भारी गुणों का अभाव बतलाया है। -ज'. ग.7-2-66/IX/ र. ला. जन परमाणु की स्निग्धता-रूक्षता की हानि-वृद्धि भी शुद्ध परिणमन है शंका-जब जघन्य अंशवाला शुद्ध परमाणु दो अंशरूप परिणमता है तो निमित्त कौन होता है ? एणं यह परिणमन स्वभाव है अथवा विभाव ? समाधान-जब जघन्य अंशवाला परमाणु दो अंशरूप परिणमता है तो उस परिणमन में कालद्रव्य निमित्त होता है । पंचास्तिकाय में कहा भी है"पुद्गलानां सक्रियत्वस्य बहिरंग साधनं परिणाम निवर्तकः काल इति ते कालकरणाः।" (गाथा ९८ टीका) अर्थ-पुद्गलों को सक्रियपने का बहिरंग साधन परिणाम निष्पादककाल है, इसलिये पुद्गल कालकरण वाले हैं। परमाणु के गुणों में जो परिणमन होता है । वह स्वभाव परिणमन है । 'शुद्ध परमाणुरूपेणावस्थानं स्वभावद्रव्यपर्यायः वर्णादिभ्यो वर्णान्तराविपरिणमनं स्वभावगुणपर्यायः।' ( पंचास्तिकाय गाथा ५ की टीका) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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