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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] परमाणु में शक्तिरूप से भी गुरु लघु प्रादि नहीं शंका - जैनसंदेश में लिखा है कि "गुरु, लघु, मृदु, कठिनस्पर्शरूप परिणत हुए स्कन्धरूप होने को शक्ति के योग से परमाणु को इन स्पर्शवाला भी कहा जा सकता है । परमाणु में सर्वथा इनका निषेध करने से तो स्कन्ध में भी उनका दर्शन होना सम्भव नहीं है" क्या परमाणु में गुरु, लघु, मृदु, कठिनस्पर्श है ? [ १००७ समाधान - श्री कुंदकुंदाचार्य ने पंचास्तिकाय गाथा ८१ में परमाणु में दो-दो स्पर्श बतलाये हैं । शीतउष्ण में से कोई एक तथा स्निग्ध रूक्ष में से कोई एक । इसप्रकार परमाणु में दो स्पर्श होते हैं। किसी भी आचार्य ने परमाणु में शक्ति या व्यक्तिरूप से गुरुलघु या मृदु-कठिन स्पर्श का निर्देश नहीं किया है। एक परमाणु में दूसरे परमाणुओं के साथ बन्ध को प्राप्त होने की शक्ति है, क्योंकि उसमें स्निग्ध या रूक्षगुण है। स्कंध अवस्था में गुरुलघु या मृदु-कठिनस्पर्श होते हैं । परमाणु में इन गुरु आदि स्पर्श को मानने से आगम से विरोध आ जायगा । श्रागम का कुतर्क के द्वारा खण्डन करना उचित नहीं है, क्योंकि आगम तर्क का विषय नहीं है ? (धवल पु. १४ पृ. १५१ ) । - जै. ग. 7-2-66/X/र. ला. जैन परमाणु का स्वरूप से रहने का काल शंका- पुद्गलपरमाणु क्या कभी स्कन्ध से पृथक् होता है ? उसका परमाणुरूप से रहने का उत्कृष्ट काल कितना है ? समाधान - पुद्गलपरमाणु स्कन्ध से पृथक् होता है क्योंकि तस्वार्थ सूत्र अध्याय ५ सूत्र २७ 'भेदावणः' से सिद्ध है कि स्कन्ध के भेद से अणु की उत्पत्ति होती है । अणु स्कन्ध को भी प्राप्त होते हैं और पृथक् होकर अणुरूप हो जाते हैं । अनादिकाल से अब तक परमाणु की अवस्था में ही रहनेवाला कोई प्रणु नहीं है ( राजवार्तिक अध्याय ५ सूत्र २२ वार्तिक १० ) । पुद्गलपरमाणु का परमाणुरूप से रहने का कोई नियतकाल नहीं है । कोई परमाणु दूसरे समय में स्कन्ध से बंध जाता है और कोई बहुत कालतक स्कन्धपने को प्राप्त नहीं होता । - जै. ग. 4-4-63 / IX / शान्तिलाल परमाणु में कर्णेन्द्रियग्राह्यत्व नहीं । शब्दगुण नहीं पर्याय है। शंका- 'जैनसंदेश' में प्रवचनसार गाथा २१४० की टीका उद्धृत करके लिखा है- "यहाँ परमाणु में शक्तिरूप से इन्द्रियग्राह्यता स्वीकार की है । अतः जैसे परमाणु में शक्तिरूप से अन्य इंद्रियसंबंधी ग्राह्यता है जैसे ही कर्णेन्द्रियसंबंधी ग्राह्यता भी है ।" क्या यह निष्कर्ष ठीक है ? समाधान- प्रवचनसार गाथा २।४० में परमाणु की इंद्रियग्राह्यता का कथन ही नहीं है, किन्तु वहाँ पर तो स्पर्श रस गंध वर्णं, इन चार गुणों की इंद्रिय ग्राह्यता का कथन है जो इस प्रकार है - "इंद्रियग्राह्याः किल स्पर्शरसगंधवर्णास्तद्विषयत्वात्, ते चेन्द्रियग्राह्यत्वव्यक्तिशक्तिवशात् ग्राह्यमाणा अग्राह्यHere आ एकद्रव्यात्मक सूक्ष्मपर्यायात्परमाणोः आ अनेकद्रव्यात्मकस्थूलपर्यायात्पृथिवीस्कन्द्याच्च सकलस्यापि पुद्गलस्याविशेषेण विशेषगुणत्वेन विद्यन्ते ।” अर्थात् स्पर्श, रस, गंध और वर्णं इंन्द्रियग्राह्य हैं, क्योंकि वे इन्द्रियों के विषय हैं। इंद्रियग्राह्यता की व्यक्ति और शक्ति के वश से भले ही वे स्पर्श आदि गुण इंद्रियों के द्वारा ग्रहण किये जाते हों या ग्रहण न किये जाते हों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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