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[ पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
___समाधान-'भेदावण', इस सूत्र द्वारा यह कहा गया है कि स्कंध के भेद से अणु की उत्पत्ति हो सकती है। यह अणु भेदरूपी क्रिया का कार्य होने से 'कार्यपरमाणु' कहा जाता है। इसमें स्निग्ध या रूक्ष के जघन्य अविभागपरिच्छेद हों, ऐसा कोई एकान्त नियम नहीं है। यदि जघन्य अविभागपरिच्छेद भी हों तो वे भी काल पाकर वृद्धि को प्राप्त हो जाते हैं । कहा भी है
"स्नेहादयो हि गुणाः परमाणौ प्रादुर्भवन्ति वियन्ति च ।" [ रा-वा-५।२५७ ] अर्थात् परमाणु में स्निग्ध आदि गुण हानिवृद्धि को प्राप्त होते रहते हैं।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि जघन्यगुण वाला परमाणु भी, स्निग्ध या रूक्षगुण में वृद्धि हो जाने पर, बंधयोग्य हो जाता है।
श्री पंचास्तिकाय गाथा ९८ की टीका में भी कहा है।
"चकर्मादीनामिव कालस्याभावः। ततो न सिद्धानामिव निष्क्रियत्वं पुदगलानामिति "अत्र यथा श्रद्धात्मानुभूतिबलेन कर्मक्षये जाते कर्म नोकर्म पुगलनामभावात् सिद्धानां निःक्रियत्वं भवति न तथा पुद्गलानाम् । कस्मात् ? कालस्य सर्वदेव सर्भनव विद्यमानत्वादित्यर्थः।"
अर्थात् जीवों के बन्ध का कारण कर्मोदय है और पुद्गल के बन्ध का कारण कालद्रव्य है। जिसप्रकार शुद्धात्मानुभूति से कर्मों का क्षय हो जाने पर कर्मनोकर्मरूप पुद्गलों का जीवों से प्रभाव हो जाता है और सिद्धजीव पुनः बन्ध को प्राप्त नहीं होते; उसप्रकार पुद्गलपरमाणु स्कन्ध से पृथक् हो जाने पर पुनः बन्ध को प्राप्त न हो ऐसा नहीं है, क्योंकि कालद्रव्य सर्वदा और सर्वत्र विद्यमान रहता है, जिसके कारण कार्यपद्गलपरमाणु पुनः बन्ध को प्राप्त हो जाता है।
जं. ग. 12-6-67/IV/ म. घ. सास्ती भिन्न-भिन्न परमाणुओं में भिन्न-भिन्न वर्ण शंका-वर्णगुण के अविभागप्रतिच्छेद भी परमाणु में होते हैं और वह भी स्पर्श की तरह अनन्त तक बढ़ते हैं या नहीं। वर्णगुण की पांच पर्यायें हैं, उन पांच पर्यायों में से स्पर्शगण को कौनसी पर्याय होती है ? क्या सभी परमाणुओं में एकसा वर्ण होता है या भिन्न-भिन्न वर्ण होते हैं ।
समाधान-वर्णगुण के अविभागप्रतिच्छेद भी परमाणु में घटते-बढ़ते रहते हैं । "शुद्धपरमाणरूपेणावस्थान स्वभावद्रव्यपर्यायः वर्णादिभ्यो वर्णान्तरादिपरिणमनं स्वभावगुणपर्यायः ।" ( पंचास्तिकाय गाथा ५ को टोका)
अर्थात-शुद्धपरमाणु में वर्ण से वर्णान्तररूप परिणमन होना स्वभावगुणपर्याय है।
इससे सिद्ध होता है एक ही वर्ण के अविभागप्रतिच्छेदों में हीनाधिक होना अथवा एकवर्ण से दूसरे वर्णरूप होना यह परमाणु में स्वभाव-गुण-पर्याय है । परमाणु में एक ही वर्ण के जघन्यअविभागप्रतिच्छेद से बढ़कर उत्कृष्टअविभागप्रतिच्छेद भी हो सकते हैं और वर्णगुण की एकपर्याय से दूसरीपर्याय भी हो सकती है। सभी परमाणुओं में वर्णगुण की एक ही पर्याय हो ऐसा नियम नहीं है। भिन्न-भिन्न परमाणु भिन्न-भिन्न वर्णवाले हो सकते हैं।
-जं. ग. 26-6-67/IX/ र. ला. जैन
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