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________________ ४० : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ चाकर ही समझता रहता है ! सत्य ज्ञान और व्यवहार-कुशलताका यह अन्तर्विरोध जगह-जगह, बार-बार देखा गया है। आज भी खुली आँखों देखा जा सकता है ! पंडितजीने अपने जीवन में विपुल साहित्य-साधना की । यह साधना पहाड़ खोदने जैसी कठिन रही है। इसीके कारण शायद उन्हें ब्रेन-हेमरेज हो गया और वे अचानक छीन लिये गये । उनके जानेसे न केवल वाराणसी की अपूर्व क्षति हुई, बल्कि सम्पूर्ण भारत वर्षके जैन समाजको क्षति हुई है और स्वतंत्र चितंन तथा निर्भीक विचारधाराके एक प्रकांड मनीषी की पावन धारा ही सूख गयी! लगभग ३५ वर्ष बाद उनकी स्मृति में कुछ भावना प्रधान स्नेहीजन स्मृति ग्रंथका प्रकाशन करके विनयांजलि अर्पण कर रहे है-यह शुभ है ! आशा है हमारी नयी तरुण पीढ़ी डाक्टर महेन्द्रकुमारजी के प्रशस्त किये गये स्वतंत्र मनीषाके पथ पर अपनी प्रतिभा का आलोक फैलाने में समर्थ होंगे। जैनदर्शन के आधुनिक मेरु • डॉ० सुरेशचन्द्र जैन, वाराणसी पूज्य सन्त श्री गणेशप्रसादजी वर्णीके सत्प्रयत्नोंसे ज्ञानद्वीपकी शृंखलामें डॉ० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य के योगदानको जैन दार्शनिक क्षेत्रमें महान् ताकिक भट्टाकलंकदेवसे किसी दृष्टिसे न्यून नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उनके जैन न्यायके गूढ़ रहस्योंका सम्पादन एवं पादटिप्पणके माध्यमसे जिस रूपमें अल्पतम समयमें व्याख्यायित किया है, वह स्तुत्य, स्पृहनीय और अनुकरणीय है।। यद्यपि विद्यमान युवा पीढ़ो उनके साक्षात् सानिध्यसे वंचित रही है, तथापि उनकी कृतियाँ, उनकी गहन चिन्तन पद्धति, गवेषणापरक विधा एवं सम्पादनकी नयी दिशाका सहज बोध कराती हैं । ऐसे मनीषी अन्यतम दार्शनिक मेरुके प्रति अपनी हार्दिक विनयांजलि अर्पित करता हूँ ! डॉ. कोठिया जी से जो सुना; जो गुना • प्राचार्य निहालचंद जैन, बीना डॉ. पं० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य अपने युगके न्याय-वाङ्गमयके एक कालजयी हस्ताक्षर जिन्हें बुद्धिका वरदान माँ ( श्रीमती ) सुन्दरबाई जी से मिला था । बुन्देलखण्ड खुरई (सागर) की माटीमें केवल श्रेष्ठ गुणवत्ताका गेहूँ ही नहीं उपजाया, बल्कि ज्ञानकी फसलोंको भी उपजाया है। खरईको ऐसे सरस्वतीके वरदपुत्रको रूपायित करनेका सौभाग्य मिला जिन्होंने न्यायशास्त्रके क्लिष्टसे क्लिष्ट ग्रन्थोंका जैन साहित्यको अपने अक्षय अवदान द्वारा समृद्ध किया । बीसवीं शताब्दीके जैन-विद्वानों/पण्डितोंकी सूची तैयार की जावे, तो उस सूचीके अधिकतर पन्नोंमें बुन्देलखण्डका गौरव यशोगान अंकित होगा। डॉ० दरबारीलाल कोठिया-न्यायाचार्य उनके समकालीन पण्डित आज विद्यमान हैं, जिनके पास बैठकर इन पंक्तियोंके लेखकने डॉ० पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यकी असाधारण बुद्धि और ज्ञान-प्रतिभाके अनेक किस्से/संस्मरण सुने और अनुभव किया कि ऐसे यशस्वी व्यक्तित्व-जैन समाजको, सरस्वतीकी विशेष अनुकम्पासे ही सुलभ होते हैं । "जननी जन्मभूमिश्च स्र्वगादपि गरीयसी" की भावनासे अनुप्राणित होकर अपनी जन्मभूमि बुन्देलखण्डकी माटीका अल्पांश ऋण चुकानेके लिए पण्डित महेन्द्रकुमारजीने अपनी सेवाका श्रीगणेश-खुरईके जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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