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________________ १ / संस्मरण : आदराञ्जलि : ४१ विद्यालय से किया। लेकिन सरिता भला सरोवर की सीमाओं में बँधकर कैसे रह सकती है । अस्तु । १९३० में वे " स्याद्वाद - महाविद्यालय" वाराणसी में अध्यापन हेतु चले गए। बनारस के कंकर कंकरमें व्याप्त शंकरका यह वरदान है कि जो भी शिक्षार्थी 'ज्ञान' को जीवन-साधनाका लक्ष्य बना कर वहाँ जाता है, वह उद्भट विद्वान् बनकर सम्पूर्ण देश में विख्यात हो जाता है। ऐसा ही वरदान डॉ० महेन्द्रकुमारजी को प्राप्त हुआ । आज डॉ० महेन्द्रकुमारजी का भौतिक शरीर हमारे बीच विद्यमान नहीं है, परन्तु न्यायशास्त्र के ग्रन्थोंके कुशल सम्पादन व उनकी विस्तृत प्रस्तावनाओंके रूपमें आपका ज्ञान व यश शरीर आज भी अविद्यमान है । ऐसी महान् प्रणम्य आत्माको ये कुछ पंक्तियाँ- पूजाको थालमें अक्षत ( चावल ) के कुछ धवल-कण ही हैं जिन्हें समर्पित कर उस प्रज्ञा पुरुषको लेखकका विनम्र प्रणाम है । मेरे विद्या-गुरु • पं अमृतलाल जैन शास्त्री, वाराणसी मैं स्वयं को इस दृष्टि से सौभाग्यशाली समझता हूँ कि स्याद्वाद दि० जैन महाविद्यालय काशी में रहकर मैंने परम श्रद्धय डॉ० पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचाय से जैनदर्शन का आचार्य अन्तिम खण्ड तक अध्ययन किया था । आप केवल जैन और जैनेतर दर्शनों के ही मनीषी विद्वान् नहीं थे प्रत्युत सिद्धान्त और साहित्य के भी प्रौढ़ विद्वान् थे । पूज्य पं० गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्यंने आपके सहयोग से गोम्मटसार कर्मकाण्डका अथ से इति तक पारायण किया था। मैंने दार्शनिक ग्रन्थोंके अतिरिक्त यशस्तिलकचम्पू उत्तरार्धके दुरूह पद्योंका आपसे अध्ययन किया था । आपने अध्ययन कालमें घोर परिश्रम किया था। फलत: दिगम्बर एवं श्वेताम्बर जैन ग्रन्थ आपको प्रायः कण्ठस्थ थे । प्रमेयकमलमार्तण्ड और अष्टसहस्री जैसे ग्रन्थ हम छात्रोंके सामने रहते थे और आप गद्दी पर बैठे-बैठे किसी भी पंक्तिको जरा सा देखकर आगेकी पंक्तियाँ स्वयं बोलते जाते थे और फिर उनका विस्तृत विवेचन भी करते जाते थे । दिगम्बर ग्रन्थोंकी भाँति श्वेताम्बर ग्रन्थोंका भी आपने गहन अध्ययन किया था । परीक्षाके दिनोंमें जब मैं परीक्ष्य ग्रन्थको लेकर आपके पास पहुँचता था तो आप ग्रन्थ खोलकर प्रत्येक पृष्ठ की शंकाओं और उनके समाधान स्पष्ट बता दिया करते थे और लगभग एक घंटे में सम्पूर्ण ग्रन्थकी सारगर्भित बातें हमें स्पष्ट हो जाती थीं । जैन और जैनेतर दर्शनोंके अतिरिक्त बौद्धदर्शनका भी आपका गहन अध्ययन था । काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के संस्कृत कॉलेजमें आप बौद्धदर्शन ही पढ़ाते थे । समय-समय पर अनेक बौद्ध भिक्षु आपके पास बौद्ध दर्शनके ग्रन्थोंके अध्ययन हेतु आया करते थे। मैंने बौद्ध भिक्षुओंको प्रमाणवार्तिक आदि ग्रंथोंका आपसे अध्ययन करते देखा है । ऐसे प्रतिभाशाली विद्वान् को मेरा शतशः नमन । विद्वानेव विजानाति विद्वज्जनपरिश्रमम् • डॉ० कमलेशकुमार जैन 'चौधरी' वाराणसी अप्रैल १९९४ के प्रारम्भमें बी० एल० इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डालॉजी, दिल्लीमें शोध-अध्येताके पद पर नियुक्त हुआ । और 'जैन संस्कृत टीकाओंमें उद्धरण' विषयक प्रोजेक्टमें कार्य करना शुरु किया तो १-६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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