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________________ ३ / कृतियोंकी समीक्षाएँ : २७ २-टिप्पणी और द्वितीय भागकी प्रस्तावना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है जिसमें सम्पादकने अथक श्रम किया है। ऐतिहासिकताके बीजोंको उद्घाटित करते हुए तुलनात्मक दृष्टि अपनाई गई है। विषय विवेचनमें संकीर्णता नहीं अपनाई गई है। ३-कुछ टिप्पणियां ग्रन्थकारके आशयको स्पष्ट करनेके लिए तथा कुछ पाठशुद्धिके लिए भी दी गई है। ४-प्रत्येक विषयके अन्तमें पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष संबंधी ग्रन्थोंकी विस्तृत सूची दी गई है जिससे उस विषयके पर्यालोचनमें और अधिक सहायता मिलती है। ५-प्रस्तावनामें आचार्य अकलंक और प्रभाचन्द्रके संबंधमें ज्ञातव्य अनेक ऐतिहासिक और दार्शनिक मन्तव्योंका विवेचन किया गया है। प्रसङ्गतः जैन एवं जैनेतर ग्रन्थकारोंकी तुलना करते हुए बहुत-सी बातोंके रहस्य खोले गए हैं। इसे यदि जैनतर्क युगके इतिहासकी रूपरेखा कही जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। अतः ऐतिहासिकोंके लिए यह प्रस्तावना बहुत उपयोगी है। - ६-जो पाठ अशुद्ध थे उनको सुधारनेका प्रयत्न किया गया है। संपादकने इस बातको इंगित करनेके लिए उस कल्पित शुद्धपाठको ( ) ऐसे ब्रकिटमें दिया है। इसके अतिरिक्त जो शब्द मलमें त्रुटित थे या नहीं थे उनकी जगह संपादकने जिनशब्दोंको अपनी ओरसे रखा है उसे [ ] ऐसे ब्रक्रिट के द्वारा प्रदर्शित किया है। ७-इसके संपादनमें ईडर भण्डारकी (आ० संज्ञक ) प्रतिको आदर्श माना गया है। शेष अन्य चार प्रतियोंका यथास्थान उपयोग किया गया है । विवृतिकी पूर्णता आ० प्रतिके अतिरिक्त जयपुरकी प्रतिसे की इस तरह न्यायाचार्य पं० महेन्द्र कुमार जीका यह प्रथम संपादन कार्य इतना महत्त्वपूर्ण और आदर्शदीपक हुआ कि कालान्तरमें इन्हें प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि ग्रन्थोंके संपादनका उत्तरदायित्व सौंपा गया जिसे इन्होंने उसी लगन और ईमानदारीसे पूर्ण किया। न्यायकुमुदचन्द्रका इनपर इतना प्रभाव था कि इन्होंने इसके संपादन कालमें उत्पन्न ज्येष्ठ पुत्रका नाम स्मृतिनिमित्त 'कुमुदचन्द्र' रखा जो कालकी गतिका निशाना बन गया और संपादित यह ग्रन्थ ही उसका पुण्यस्मारक बना जिसे पं० जीने अपने साहित्ययज्ञकी आहति माना । ऐसे स्वनामधन्य पं० महेन्द्रकुमार जीकी प्रतिभा जो प्रभाचन्द्राचार्यवत् थी को शतशत वन्दन करते हए उनके द्वारा प्रदर्शित मार्गपर चलनेकी कामना करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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