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________________ २६ : डॉ॰ महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ संपादन और प्रकाशन योजना माणिकचंद्र दि० जैन ग्रन्थमालाके मंत्री पं० नाथूराम जी 'प्रेमी' की इच्छासे प्रेरित होकर न्यायाचार्य, न्यायदिवाकर, जैनप्राचीन न्यायतीर्थं आदि उपाधियोंसे विभूषित पं० महेन्द्रकुमार शास्त्री जो श्री स्याद्वाद दि० जैन महाविद्यालय, काशीमें जैन न्यायके अध्यापक थे, ने पं० सुखलाल संघवी द्वारा संपादित सन्मतितर्ककी शैली में न्यायकुमुदचन्द्रका सम्पादन प्रारम्भ किया । यह पं० महेन्द्रकुमारजी का इस क्षेत्र में प्रथम प्रयास था । इसके सम्पादनमें पं० सुखलाल संघवी और पं० कैलाशचन्द्रजी का बहुमूल्य सहयोग रहा है । सम्पादनोपयोगी साहित्योपलब्धि कराने में पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णीका औदार्य पूर्ण सहयोग मिला। इसके सम्पादनमें पाँच प्रमुख प्रतियोंसे सहायता ली गई थी । और उन प्रतियोंके आधार पर जो या तो अशुद्ध थीं या अधूरी थीं, प्रस्तुत संस्करणका सम्पादन कितना कठिन कार्य है, यह अनुभवी सम्पादक ही समझ सकता है । सम्पादन करते समय जिन-जिन बातों का ध्यान रखना चाहिए उन सभीका ध्यान रखा गया है। प्रस्तुत संस्करण माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, बम्बई से ई० सन् १९३८ तथा १९४१ में क्रमशः दो भागों में प्रकाशित हुआ है । छपाई में मूलपाठ, विवृत्ति, व्याख्यान, टिप्पण, पाठान्तर, विरामचिह्नों आदिका समुचित प्रयोग किया गया है । विषयक सुबोधता तथा शोधार्थियोंके उपयोगके लिए द्वितीय भाग में निम्न १२ परिशिष्ट दिए गए हैं(१) लघीयस्त्रय - कारिकानुक्रमणिका (२) लघीयस्त्रय और उसकी स्वविवृतिमें आगत अवतरणवाक्योंकी सूची, (३) लघीयस्त्रय और स्वविवृतिके विशेष शब्दोंकी सूची, (४) अन्य आचार्यों द्वारा उद्धृत लघीयस्त्रय कारिकायें एवं विवृति अंशोंकी तुलना, (५) न्यायकुमुदचन्द्रमें उद्धृत ग्रन्थान्तरोंके अवतरण, (६) न्यायकुमुदचन्द्र में निर्दिष्ट न्यायवाक्य, (७) न्यायकुमुदचन्द्र में आगत ऐतिहासिक और भौगोलिक नामोंकी सूची, (८) न्यायकुमुदचन्द्र में उल्लिखित ग्रन्थ और ग्रन्थकारोंकी सूची, (९) न्यायकुमुदचन्द्रान्तर्गत लाक्षणिक शब्दों की सूची, (१०) न्यायकुमुदचन्द्रान्तर्गत कुछ विशिष्ट शब्द, (११) न्यायकुमुदचन्द्रान्तर्गत दार्शनिक शब्दों की सूची, (१२) मूल ग्रन्थ तथा टिप्पणीमें प्रयुक्त ग्रन्थ संकेत सूची ( पृष्ठ संकेतके साथ 1 पं० महेन्द्रकुमारजीका वैदुष्य पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य जिन्होंने न्यायकुमुदचन्द्र, प्रमेयकमलमार्तंड, अकलङ्क ग्रन्थत्रय आदि महत्त्वपूर्ण एवं गम्भीर ग्रन्थोंका सटिप्पण सुन्दर सम्पादन किया है, उनकी बराबरीका आज दूसरा कोई संपादक नहीं दिखलाई पड़ रहा है । आप जैनविद्याके प्रकाण्ड मनीषी तो थे ही, साथ ही जैनेतर न्यायशास्त्रमें भी गहरी पैठ थी । न्यायकुमुदचन्द्रके टिप्पण तथा द्वितीय भागकी ६३ पृष्ठोंकी विस्तृत प्रस्तावना आपके वैदुष्यको प्रकट करती है । प्रथम भागकी १२६ पृष्ठोंकी प्रस्तावना पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री द्वारा लिखित है । इसके बाद भी आपने द्वितीय भागमें प्रभाचन्द्रकी वैदिक और अवैदिक इतर आचार्योंसे तुलना करते हुए अभिनव तथ्योंको प्रकट करनेवाली प्रस्तावना लिखी | ग्रन्थ संकेत सूची, शुद्धिपत्रक आदिके साथ विस्तृत विषयसूची दोनों भागों में दी गई है जिससे विषयकी दुर्बोधता समाप्त हो गई है । संपादकी प्रमुख विशेषताएँ पं० महेन्द्रकुमार जीके वैदुष्यको तथा सम्पादन कलाकी वैज्ञानिकता को प्रकट करनेवाली प्रस्तुत न्यायकुमुदचन्द्रके संस्करणको प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं १- आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से संपादन किया गया है । ग्रन्थसंकेतसूची, विस्तृत विषयसूची, परिशिष्ट, प्रस्तावना, शुद्धिपत्रक, सहायक ग्रन्थसूची, विराम चिह्नों का समुचित प्रयोग, टिप्पण, पाठान्तर, तुलना 'आदि सभी सुव्यवस्थित और प्रामाणिक हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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