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________________ अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [प्रथमो वर्गः शुद्ध प्रति मुद्रापित की है । इस प्रति मे जो मूल सूत्र हैं, वे ठीक प्रतीत होते हैं । इस मे सूत्रों के साथ-साथ श्री अभयदेव-सूरि-कृत सस्कृत-विवरण भी है, किन्तु यह बहुत ही सक्षिप्त है । अनुत्तरोपपातिक-दशा शब्द की व्याख्या विवरणकार इस प्रकार करते है: "अथानुत्तरोपपातिकदशासु किन्चिद्वघाख्यायते--तत्रानुत्तरेषु-सर्वोत्तमेषु विमानविशेषेपु, उपपातः-जन्म,अनुत्तरोपपातः,स विद्यते येषां तेऽनुत्तरोपपातिकास्तत्प्रतिपादिका दशाः-दशाध्ययनप्रनिबद्धप्रथमवर्गयोगाद्दशा:-ग्रन्थविशेषोऽनुत्तरोपपातिकदशास्तासां च सम्बन्धसूत्रं तयाख्यानं च ज्ञाताधर्म-कथा-प्रथमाध्ययनादवसेयम् । शेपं सूत्रमपि कण्ठ्यम्"। इसी प्रकार अन्य कुछ-एक स्थलों का ही विवरण किया गया है। उनमें धन्ना अनगार की उपमा के स्थल पर विशेष है । शेष सूत्रों को सरल जान कर विना किसी विवरण किये छोड़ दिया गया है। किन्तु ये सूत्र अर्थ की दृष्टि से सुगम होने पर भी ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्त्व के हैं । ___पाठकों की सुविधा के लिए इस सूत्र का स्पष्ट और सुगम अर्थ नीचे दिया जाता है: चतुर्थ आरे के उस समय जब श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी निर्वाणपद प्राप्त कर चुके थे, राजगृह नाम का एक नगर था । उस नगर के बाहर एक गुणशेलक नाम चैत्य (उद्यान) था । एक समय उस उद्यान में आर्य सुधा स्वामी पधारे । यह सुनकर उस नगर के लोग उनके मनोहर व्याख्यान सुनने के लिए उन की सेवा में उपस्थित हुए । जब उनका व्याख्यान हो चुका, तव जनता प्रसन्न-चित्त से नगर को वापस चली गई। इसके अनन्तर आर्य जम्बू स्वामी ने भगवान् सुधा स्वामी से प्रश्न किया "हे भगवन् । श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी मोक्ष को प्राप्त हो गये हैं। यह हम ने आप के मुखारविन्द से सुन लिया है कि उन्होंने आठवे अङ्ग 'अङ्गकृत्-सूत्र' का अमुक अर्थ प्रतिपादन किया है । अब मेरी जिज्ञासा नौव अङ्ग के अर्थ जानने की है । कृपा करके वह भी वर्णन कीजिए।" यह सुनकर श्री सुधा स्वामी जी ने इस से उक्त नौवे अग का अर्थ कहना प्रारम्भ किया है : इम सूत्र मे "तेणं कालेणं तेण समएण" का "तस्मिन् काले तस्मिन् समये" सप्तम्यन्त अनुवाद किया गया है। किन्तु यह दोपाधायक नहीं है । क्योंकि अर्द्ध
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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