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________________ प्रथमो वर्गः] भापाटीकासहितम् । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी मोक्ष को प्राप्त हो चुके तव जम्बू स्वामी के चित्त मे जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने किस प्रकार उक्त सूत्र का अर्थ वर्णन किया है । उनकी इस जिज्ञासा को देखकर श्री सुधा स्वामी निम्न-लिखित रीति से इस सूत्र का विपय वर्णन करते हैं। इस समय जो एकादश अङ्ग-सूत्र हैं, वे सब श्री सुधा स्वामी की वाचना के ही कहे जाते हैं । ऐमा न मानने से कई एक आपत्तियां उपस्थित हो जाती हैं। जैसे-अङ्ग-सूत्र में इस प्रकार के पाठ मिलते हैं कि धन्ना अनगार ने एकादश अगों का अध्ययन किया था । किन्तु इस समय जो अनुत्तरोपपातिक-सूत्र है, उस में मुख्य रूप से धन्ना अनगार का ही विशद अधिकार पाया जाता है । ऐसी अवस्था मे यह शङ्का विना समाधान के ही रह जाती है कि उन्होंने नौवे कौन से अग का अध्ययन किया होगा। क्योंकि प्रस्तुत नौवे अड्ग मे तो धन्ना अनगार का , पादोपगमन से अनशन पर्यन्त और अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने तक का सब वर्णन दिया गया है । अतः यह वात निर्विवाद सिद्ध होती है कि यह सब सुधर्माचार्य की ही वाचना है और वह भी श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाणपद-प्राप्ति के अनन्तर ही की गई है । इस सूत्र की हस्त-लिखित प्रतियों में निम्न-लिखित पाठ-भेद भी मिलते हैं : "तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे होत्था । तस्स णं रायगिहे नाम नयरस्स सेणिए नाम राया होत्था वण्णओ चेलणाए देवी । तत्थ णं रायगिहे नाम नयरे बहिया उत्तर-पुरस्थिमे दिसा-भाए गुणसेलए नाम चेइए होत्था । तेणं कालेणं तेणं समएणं गयगिहे नामं नयरे अन्न-सुहम्मे नाम थेरे जाव गुणसेलए नामं चेहए तेणेव ममोमढे परिसा निग्गया धम्मो कहिओ परिसा पडिगया।" "तेणं कालेण तेण समएणं जंबु जाव पज्जुवासमाणे एवं वयामी" इनमे से पहला पाठ किसी ग्रन्थ से ज्यों-का-त्यों उद्धृत किया हुआ प्रतीत होना है। क्योंकि इम सूत्र की रचना तो श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के अनन्तर ही हुई है और श्रेणिक महाराज श्री भगवान् के विद्यमान होते ही पश्चत्व (मृत्यु) को प्राप्त हो चुके थे । इमलिए अमगत होने के कारण यह पाठ निर्मूल है । इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए 'शास्त्रोद्धार-ममिनि ने एक प्रायः
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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