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________________ विश्व-शाति अहिंसा से या अणु अस्त्रा से? 103 करन की कोई चेप्टा नही कररा। अत स्वत ही विश्वशान्ति स्थापित हो जाएगी। पर यह ता मृत्यु मै बचन के लिए सप का सहारा लेने के समान होगा। हाँ, शक्ति के बल पर सीमित समय तक किसी को पदाकान्त दिया जा सकता है, पराजित किया जा सकता है और बाह्य दृष्टि स कुछ क्षणो के लिए शान्ति की झलक भी दिखलाई पड सकती है, किन्तु कोई भी पराजित राप्ट विजेता के प्रति सद्भावना नहीं रखता। वल्कि उसम प्रतिशोध की तीव्र भावना रहती है । शाक्तिहान तभी तक मौन या निष्क्यि रह सकता है जब तक वह समुचित प्रतिरोधात्मक शक्ति का सचय नहीं कर लेता। वह विवश होकर ही विजेता का शासन मानता है, वह भी अपने तन पर, न वि मन पर। जमन और जापान के उदाहरण हमारे सामने हैं। प्रथम महायुद्ध की विभीपिकाकोसदा के लिए समाप्त करने की भावना स उत्प्रेरित होकर ही इग्लण्ड ने जमनी पर बम गिराये, जिनकी विशाल शक्ति से उसे पमु वनाररपराधीनता की वेडियो म जकड लिया। उस समय तो ऐसा लगा कि युद्ध समाप्त हो गया और शान्ति स्थापित हो गई। पर जमन के हृदय म प्रतिशोध की भावना ऐसी पनपने लगी कि भीतर ही भीतर विपक्त मायुद्ध और सशक्त भस्त्रा के निर्माण में वह जुट गया। अवसर पाकर उसने द्वितीय महायुद्ध में विनाश का जो ताण्डव दिखाया और उसस सम्पूर्ण विश्व को कितनी हानि उठानी पडी, जिसके फलस्वरूप यूरोप के लग नग सभी राष्ट्र न केवल युद्ध के लिए सज्जित ही हुए बल्कि इसी के परिणाम स्वरूप हीराशिमा और नागासाकी-जस भीषण नरमहार भी हुए। तात्पय यह किपराजित राप्ट के प्रतस्तल में यदितनिक भी प्रतिशाध की भावना रही तो अवसर पाकर कभी भी वह विशाल ज्वाला का रूप ले सकती है। क्याकि सहार-शक्ति शारीरिक नियत्रण तक ही सीमित रहती है,पात्मिक नियंत्रण के लिए वह अक्षम है। रूस, फ्रास और चीन की राज्य कान्तियाँ दसरा प्रत्यक्ष प्रमाण है। अर अहिंसा का प्रयोग दपिए । जहाँ अहिंसा और प्रम क द्वारा मानव मन पर अधिकार किया जाता है वहाँ का प्रभाव स्वभावत हो चिरस्थायी होता है। विजित जनता यहाँ पगजवादभूत ग्लानि का मनुभव नहीं
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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