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________________ 106 आधुनिक विज्ञान और अहिंसा वाहिनी रही है। विश्व-शान्ति के लिए भारतीय सेना का अधिकाधिक उपयोग वांदनीय है। चिन्तन की बात है कि जब जड़ पदार्थों में भयंकर विनाशलीला की शक्ति है, तो भला जीवित मानव की साधना मे कितनी तेजस्विता छिपी होगी? जीवन को गुद्ध करने वाली अहिंसा ही सर्वागीण विकास को अवकाश देती है। वह मानव को ऐसा दृष्टिकोण प्रदान करती है, जिससे संघर्ष और प्रतिहिंसा ही समाप्त हो जाए। प्रसन्नता की वात है कि अमेरिका और रूस ने अहिमा की दिशा में चरण बढ़ाने प्रारम्भ कर दिए हे। वे अव अनुभव करने लगे हैं कि अणु अस्त्ररूपी दानव की समस्या अहिंसा द्वारा ही हल हो सकती है। अतः अहिंसा शक्ति के अग्रदूत पं० जवाहरलाल नेहरू को बार-बार यामन्त्रित किया जाता है। जहाँ किसी समय विदेशी आकाशवाणी द्वारा पं० नेहरू के विरोध में धुंवाधार प्रचार किया जाता था, वहाँ आज इन्हे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति का सन्देशवाहक माना जाने लगा है। किसी समय कहा जाता था कि भारत की भी क्या कोई नीति हे ? पर आज भारत की नीति प्रशंसा के साथ अनुकरणीय मानी जाती है। ___अभी-अभी सन् 1960 में प्राइजनहावर और शुश्चेव भारत-यात्रा कर चुके है और भारतीय नीति की सराहना भी कर गये है। अणुशस्त्रो के स्वामियो को अपने प्रायुधो पर शान्ति स्थापन विषयक विश्वास होता तो वे कदापि भारतीय रीति-नीति का समर्थन नहीं करते। अव भी यदि ग्रायुद्धवादियो की श्रद्धा अणुशस्त्र द्वारा विश्वशान्ति स्थापित करने मे है, तो उनके सम्मुख सहज रूप से ये प्रश्न पाते है1. अणुशस्त्र मार्ग से मानव जाति अहिंसा की ओर गतिमान न हुई तो खतरा मानने मे भी कोई सदेह रह जाता है ? 2. आणविक शस्त्रो के निर्माण, संरक्षण और प्रयोग करते समय दुर्घटनात्मक यदि विस्फोट हो गया तो क्या विश्वशान्ति पर सकट नहीं आयेगा? 3. पायुद्ध निर्माण की पृष्ठभूमि मे रचनात्मक बुद्धि है या आक्रामक ? यदि रचनात्मक है तो क्या आप ईमानदारी के साथ कहने की स्थिति मे है कि हम कभी किसी भी राष्ट्र पर अणु-यायुद्ध प्रयुक्त नहीं करेंगे।
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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