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________________ चौबीस विश्व शांति अहिसा से या अणुअस्त्रो से ? मानव आज अहिंसा और अणु अस्त्रो के मार्ग पर खड़ा है। एक माग निमाण का है तो दूसरा ध्वस का 1 एक प्रेम, मनी, शाति, मानवता, सुरक्षा और श्रभ्युदय का है तो दूसरा हिंसा, घृणा, प्रशाति, नय और प्रतिशोधात्मक भावना का है । भारतीय समय तत्त्वचितको की दृष्टि सदव ही आध्यात्मिक रही है । तभी तो मनीषिया ने अंतरंग दृष्टि सम्पन ग्रहिसा का माग ही अपनाया है । विश्व को, अपनी साधना का सच्चा अनुभव बताते हुए, इसी प्रशस्त पथ पर चलने को प्रात्साहित किया है। पूर्व और पश्चिम की संस्कृति में सबसे वडा और मौलिक अन्तर यही है वि प्रथम संस्कृति अतरग को हो श्रेयस्कर और विश्व शांति का जनक मानती है तो दूसरी बहिरग पर श्राश्रित है । प्रथम पद्धति रोग के कारणों को समाप्त करने की चेष्टा करती है तो दूसरी "उसे दनावर ही सतुष्ट हो जाती है। पूणत नष्ट करने की क्षमता उसम नही । वाह्य दृष्टि सम्पन पश्चिमीय लोग मानवीय विकारा को दूर करने के लिए, मानव म प्राये हुए युद्धजनित दोष, विचार जनित विहार, घृणा, द्वेष, घप, कलह, स्वाथ लिप्या श्रीर सत्तालिप्सा यदि दोषो को समूल नष्ट करन के लिए श्रणुग्रस्य प्रयुक्त करते है । अमेरिकाको स्वरमा के लिए एटलाटिक महासागर के इस पार यूरोपीय देगा में भी अपनी सत्ता प्रस्थापित करना आवश्यक प्रतीत होता है । दूसरी और प्रशात व हिन्द महासागर में भी अपने सना-सगम बनाए रखने की प्रवृत्ति प्रतीत होती है । पर उम यह चिन्ता नहीं कि अपनी राष्ट्र निस्तारवादी नीति के महाचक्र म छोट माट दश घुन की तरह पिम जाएँगे। लेकिन आज विश्वस्थिति पर्याप्त परिवर्तित हो चुकी है। एशियाई राष्ट्र नवजागरण की
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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